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________________ जिन्होने प्रान्तरिक शत्रुओं को जीत लिया है या उन पर विजय प्राप्त कर ली है, या कर रहे हैं, उन सब साधना पथ के महापथिको को नमस्कार के पांच पड़ो में गर्भित कर दिया गया है । इनके अतिरिक्त अन्य कोई पद नमस्करणीय एवं वन्दनीय शेष नही रह जाता। इन पाच पदो में सबसे पहले "नमो अरिहताणं" कहकर इसके द्वारा उन्ही अरिहतो को नमस्कार किया जाता है जिन्होने घाति कर्मों का सर्वथा क्षय कर दिया है। यह सात अक्षरो का महामन्त्र है । मन्त्र शास्त्र के अनुसार यह सप्ताक्षरी मन्त्र विनय के सात भेदों की ओर सकेत करता है, क्योकि विनय ही धर्म का मूल है "विणयमूलो धम्मो" स्वाध्याय के द्वारा श्रुतज्ञान की आराधना करना, ज्ञानियों के प्रति श्रद्धा भक्ति बहुमान एव प्रीति रखना ज्ञानविनय है। हृदय में उत्पन्न सम्यग्दर्शन को उतरोतर विशुद्ध बनाना, सम्यर ष्टियों की संगति मे रहना, सत्-असत् को विवेक दृष्टि से अलग करना ही दर्शन विनय है। संयम के प्रतिनिष्ठा रखना, उसका निरन्तर पालन करना, संयमियों के प्रति आस्था एव पूज्यभाव रखना ही चारित्र-विनय नमस्कार मन्त्र ] [ १५
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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