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________________ पूजा करनेवाली श्रमण-सस्कृति उन सभी प्रात्माओं को परम श्रद्धेय परमपूज्य एव नमस्क.- योग्य मानती है जिन्होने पांच में से किसी भी एक पद मे अवस्थिति प्राप्त करली है । श्रमण-संस्कृति के लिये वे सब इष्ट है, आराध्य हैं और वन्दनीय है। मन्त्र शन्द की व्याख्या विद्वानों ने इस शब्द की व्याख्या करते हुए कहा है गुप्त रखने योग्य रहस्य की बात, गुप्त सलाह, वेद-वाक्य,वे शब्द या इण्ठ-सिद्धि या किसी देवता की प्रसन्नता के लिए जिसका जप किया जाता है, अथवा जिसका उच्चारण झाड़ फूक करने वाले विष आदि का प्रभाव दूर करने के लिए करते हैं, वह मन्त्र है । परन्तु यहां उन मन्त्रो से अभिप्राय नही है। जिन पदों का जप करने से प्रात्मा परमेष्ठी मे लीन हो जाए, तत्सम या तदरूप हो जाए, जिसके जप से मन एकाग्र हो जाए अथवा जो मनन करनेसे जप करनेवाले की रक्षा करता है वह मत्र है । कहा भी है । मननात् नायत इति मन्त्रम् कुछ मंत्र तो केवल लौकिक ही होते है। जिसको सर्व मन्त्रों में प्रथम श्रेणी प्राप्त है, वह है नमस्कार महामन्न । यह निस्संकोच कहा जा सकता है कि इस मन्त्र की समानता रखने वाला कोई भी मंत्र नहीं है। [ प्रथम प्रकाश
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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