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________________ साधनों का यथाशक्ति एवं यथासम्भव प्रयोग करना मोक्ष-प्राप्ति में कारण है । जैसे दण्ड, चक्र, चीवर और कुम्हार ये घट के प्रति-निमित्त कारण है, जब वे कारण क्रियाशील होते है तब उन कारणो को करण कहा जाता है। वैसे ही जब साधन क्रियान्वित होते है तभी वे साधना को जन्म देते हैं। साधनों के उपयोग के बिना साधना का सम्पन्न होना असम्भव है। परमेष्ठी महामन्त्र प्रागम-शास्त्रों तथा मन्त्र-शास्त्रों मे पचपरमेष्ठी महामन्त्र का स्थान सर्वोच्च है । परमेष्ठी का अर्थ है वे महापुरुष जो सांसारिक विकारो वासनात्रों एवं मोहममता की परिधि से ऊपर उठ गए हैं, जो आध्यात्मिकता के सुमेरु के शिखर पर अवस्थित हैं, जो अनन्त-अनन्त गुणों से प्रकाशित हैं । - परमेष्ठी मन्त्र के नव पद है, अतः इसे नवकार मन्त्र भी कहा जाता है। प्रत्येक पद के साथ 'नमो' का प्रयोग किया गया है, अत: इसे नमस्कार या णमोकार मन्त्र भी कहते हैं। सब मन्त्रों में प्रमुख होने से इसे महामन्त्र भी कहा जाता है। नमस्कार मन्त्र और उसका अर्थ । णमो अरिहंताणं-नमस्कार हो जीवन्मुक्त केवलज्ञानी अरिहन्त भगवान को। ४] [प्रथम प्रकाश
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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