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________________ गया नमस्कार श्रद्धेय का है नमस्कर्ता का नहीं, क्योंकि श्रद्धेय नमस्कार का हेतु है, यदि श्रद्धेय सामने न हो तो नमस्कार के भाव भी पैदा नहीं होते, श्रद्धेय को देखकर ही नमस्कार करने वालों में नमस्कार करने की भावना पैदा होती है । नमस्कर्ता श्रद्धेय का दासत्व स्वीकार करता है, इस दृष्टि से किये गये नमस्कार का स्वामी श्रद्धेय है । ___संग्रहनय केवल सामान्यमान को विषय करता है, केवल नमस्कार को ही जानता एव देखना है । नमस्कार कर्ता का नमस्कार है या नमस्करणीय का नमस्कार है, इस तरह के तर्क-वितर्क से रहित केवल सत्ता रूप नमस्कार को ही वह स्वीकार करता है, अत: वह स्वामित्व पर विचार करता ही नही है । ऋजुसूत्र नय का इस सन्दर्भ में कहना है कि जब जीव का उपयोग नमस्कार में संलग्न होता है, “अरिहन्तों को नमस्कार है" इस तरह शब्द रूप अथवा मस्तक झकाने प्रादि रूप में क्रियारूप है । शब्द बोलना, मस्तक झुकाना या ज्ञान, शब्द और क्रिया, नमस्कार करने वाले व्यक्ति के गुण हैं, प्रतः नमस्कार भी उसी का है। नमस्कार करना कर्ता के आधीन है । इस दृष्टि से भी वह उसी का है । नमस्कार स्वर्ग पादि फल देने वाला है, वह फल भी नमस्कर्ता को प्राप्त होता है । नमस्कार करने से कर्मों का क्षयोपशम भी उसी का होता है । इस प्रकार भनेक दृष्टियों से सिद्ध होता है कि १७०] (षष्ठ प्रकाश
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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