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________________ जाती है, फिर उसके बाद द्रव्य नपस्कार शरीर से उत्पन्न होता है, अत. नमस्कार उत्तन्न करने में तीनों निमित्त कारण हैं । ऋजु-सूत्र-नय, वाचना और लब्धि ये दो ही निमित्त मानता है, क्योकि शरीर के होते हुए भी वाचना और लब्धि के बिना नमस्कार रूप क्रिया की उत्पत्ति नही हो सकती। शब्द, समभिरूढ और सभूत इन तीन नयो का कहना है कि केवल लब्धि ही पर्याप्त है, आवरण के क्षयोपशम रूप लब्धि को ही नमस्कार का निमित्त कारण मान सकते हैं, क्योंकि अभव्य जीवों मे नमस्कार की लब्धि बिल्कुल नही होती, अत: बाचना मिल जाने पर भी नमस्कार रूप कार्य की उत्पत्ति कभी होती ही नही है । भाव-नमस्कार के बिना नमस्कार का कोई अर्थ ही नही है । ते न बत्ती के होते हुए भी दीपक ज्योति के बिना प्रकाशमान नहीं होता । जिस में नमस्कार की योग्यता है, वह सीखता भी है और करता भी है, अत: नमस्कार की योग्यता ही नमस्कार में निमित्त कारण है । अब यह भी शंका हो सकती है कि नमस्कार करने वाला नमस्कार का स्वामी है या श्रद्धेयरूप नमस्करणीय है ? इस शंका का समाधान भी नयों के द्वारा ही किया जा सकता है। नैगम और व्यवहार ये दो नय मानते हैं कि नमस्कार का स्वामी परम श्रद्धेय है, नमस्कार करने वाला नही। जैसे साधु को भिक्षा में दे देने के अनन्तर वस्तु साधु की हो जाती है दाता की नहीं रहती, जैसे ही श्रद्धेय को किया नमस्कार मन्त्र] [१६९
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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