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________________ अरिहंत, सिद्ध, प्राचार्य, उपाध्याय और साधु ये पांच पद ज्ञान आदि गुणों से सम्पन्न हैं, अत: गुणार्थी भव्यात्मानों के लिये ये पद मूर्तिमान गुणों की तरह पूज्य हैं । मोक्खत्थिणो व जं मोक्ख हेयवो दंसणादि तियग व । तो तेऽभिवंदणिज्जा जह व मइहेयवो कह ते ।। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र की तरह ये पांचों पद मोक्षार्थियों के लिये मोक्ष के साधन हैं, अतएव ये उनके वन्दनीय हैं । ये पांच पद इस प्रकार मोक्ष के साधक मग्गो अविप्पणासो आयारे विणयया सहायत्त । पंचविह नमोक्कारं करेमि एएहिं हेऊहिं ।। मुक्ति का मार्ग अरिहन्त भगवान का दिखाया हुमा मार्ग है। इस मार्ग पर चलते हुए साधक शाश्वत गुणों को जानकर संसार के विनश्वर स्वभाव से विमुख होकर सिद्धत्व को लक्ष्य में रखकर मोक्ष-प्राप्ति के लिए यत्नशील होते हैं । प्राचार्य स्वयं प्राचारवान् एवं प्राचार के उपदेशक होते हैं । भव्य जीव उनके द्वारा प्राचार प्राप्त कर ज्ञानादि के आचरण का ज्ञान प्राप्त कर उसका आचरण करते हैं । उपाध्याय की शरण में जाकर मुमुक्षु जीव कर्म-नाशक ज्ञानादि विनय की प्राराधना करते हैं । साधु वृन्द मोक्षार्थियों के मोक्ष के योग्य अनुष्ठानों की साधना में सहायक होते हैं। इस प्रकार पांचों पद मोक्षप्राप्ति में हेतु एवं सहायक [ षष्ठ प्रकाश
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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