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________________ १. जैसे पवन की गति सर्वत्र है, वैसे ही साधु भी सर्वत्र विचरता है। पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण सभी दिशाओं में उसकी अव्याहत गति होती है । २. जैसे पवन की गति अप्रतिहत होती है, वैसे ही साव भी रहस्यों के बन्धनों से मुक होकर विचरता है। ३. जैसे पवन हल्का होता है, वैमे ही साधु भी द्रव्य और भाव से हल्का होता है । ४. जैसे पवन चलते-चलते कहीं का कहीं पहुंच जाता है, वैसे ही साधु भी आर्य क्षेत्र में विचरता-विचरता कहीं का कहीं पहुंच जाता है। ५. जैसे पवन सुगन्ध-दुर्गन्ध का प्रसार करता है, वैसे ही साधु भी पुण्य-पाप, धर्म-अधर्म का स्वरूप प्रकट करता ६. जसे पवन रोकने पर भी रुकता नहीं, वैसे ही साधु भी मर्यादा के उपरान्त किसी के रोकने से रुकता नहीं । ७. जैसे पवन गर्मी को दूर करता है, वैसे ही साधु भी ज्ञान-वैराग्य से जनता की प्राधि, व्याधि एवं उपाधि रूप गर्मी को दूर करके शान्ति का प्रसार करता है । नमस्कार-माहात्म्य जिन भद्र गणी क्षमा-श्रमण के शब्दों में ते अरिहंता सिद्धाऽऽयरिमो-वज्झाय-साहवो नेया। जे गुणमय-भावामओ गुणा व पुज्जा गुणत्थीणं ॥ नमस्कार मन्त्र] [१६१
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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