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________________ प्रत्येक उपमा के सात-सात भेद हैं; बारह को सात से गुणा करने पर चौरासी भेद हो जाते हैं। शास्त्रकारो ने सत्र से पहले साधु के लिये "उरग" की उपमा दी है। उरग का अर्थ है सपं । सर्प सदैव छाती के बल से चलता है और उसमें सात विशेषताएं होती हैं। उसी प्रकार की सात विशेषताएं साधु में भी पाई जाती हैं । सर्प की विशेषता को उपमान मान कर और साधु की विशेषता को उपमेय मानकर दोनों में समान-धर्म के रूप में विद्यमान विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार किया गया है१. उरग १. साधु सर्प के समान होता है, जैसे सर्प दूसरे के लिये बने हुए स्थान में रहता है वह अपने रहने के लिए: स्क्यं स्थान नहीं बनाता, वैसे ही साधु भी गृहस्थों द्वारा अपने लिये बनाए हुए स्थान में रहता है । अपने लिए गृहस्थों से घासफूस की कुटिया तक भी नहीं बनवाता । २. जैसे अगन्धन जाति का सर्प वमन किए विष को पुनः नहीं चूसता, वैसे ही साधु भी छोड़े हुए भोगों को पुनः भोगने की इच्छा नहीं करता। ३. जैसे सर्फ एक दिशा की ओर सीधा चलता है वैसे ही साधु भी सरलता से मोक्ष मार्ग में। वृत्ति करता है। ४. जैसे सर्प जब बिल में प्रवेश करता है तब वह सीधा ही-प्रया करता है वैसे ही श्रमण भी प्राहार करता हुमा ग्रास नमस्कारस्मन] [ १४७
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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