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________________ गुण प्रात्मा की अपनी निधि हैं जब कि अवगुण उस पर पड़े हुए आवरण हैं । वे आवरण कर्म-जन्य एवं औपाधिक होते हैं। महाव्रत मूलगुण हैं, जिन गुणों से मूलगुण विकसित एवं सुरक्षित रह सकें, उन्हें उत्तरगुण कहा जाता है। उत्तरगुणों में तप के सभी भेदो का समावेश हो जाता है । तप दो तरह से किया जाता है अनिवार्य और ऐच्छिक पूर्णतया रात्रि-भोजन का परित्याग करना भी साधुता के लिए अनिवार्य है। रात्रि मे सूर्यास्त होने से लेकर सूर्योदय होने तक किसी भी प्रकार का प्राहार-पानी नहीं, करना, नित्य तप है। ऐच्छिक तप जब भी करना होता है, तब दिन में ही किया जाता है रात को नही क्योंकि अनिवार्य तप मूलगुणों का पोषक एव संवर्द्धक होता है। ६. सर्वत:-रात्रि-भोजन-विरमण व्रत-साधु के लिये सर्व प्रकार के रात्रि-भोजन से जीवनभर के लिए विरक्त होना भी अनिवार्य है । आहार चार प्रकार का होता है अशनं-अन्न, पाणं-पानी, खाइम-अन्न के अतिरिक्त खाद्य पदार्थ, साइमं--प्रचार-चटनी चूर्ण, आदि स्वादिष्ट पदार्थ-इन सब का न तो रात्रि में ग्रहण करना, न ही इनका सेवन करना और न ही रात को अगले दिन के लिये अपने पास रखना साधु का परम धर्म है । क्योंकि रात्रिभोजन में प्राणातिपात आदि की संभावना होने से संदोषता १२८] [षष्ठ प्रकाश
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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