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________________ निरन्तर प्रयत्नशील रहें । इसी में उनका हित और श्रेय है। उपाध्यायों के पच्चीस गुण उपाध्याय ज्ञान के प्रक्षय भण्डार होते हैं, उनके गुणों को सीमित नहीं किया जा सकता। उनमें संख्यातीत गुण होते हैं। फिर भी दूसरों को समझाने के लिए उनके गुणों की संख्या पच्चीस बताई गई है। जो महानुभाव शिष्यों को सर्वज्ञ भाषित और परम्परा से गणधरादि द्वारा उपदिष्ट गरह अंग पढ़ाते हैं, वे उपाध्याय कहे जाते हैं । ग्यारह अंग, बारह उपाङ्ग, चरणसत्तरि, करणसत्तरि, ये पच्चीस गुण हैं । ग्यारह अंगों के पावन नाम इस प्रकार है १. आचारांग, २. सुयगडांग, ३. ठाणाङ्ग, ४. समवायाङ्ग, ५. भगवती, ६. नायाधम्मकहानो, ७. उपासक्रदशा, ८. अन्तगडदशा, ९. अनुतरोववाई, १०. पण्हावागरणा ११. विवागसुय। बारह उपाङ्गों के शुभ नाम हैं :१, उववाई, २. रायप्पसेणी, ३. जीवाभिगम, ४. पन्नवणा, ५. जबुद्दीवपण्णत्ति, ६. चन्दप्पण्णति. ७. सूरप्पण्णत्ति ८. निरयावलिया, ९. कप्पगहिसिया, १०: पुफिया, ११. पुप्फचूलिया, १२. वहिदसा । चरणसत्तरि जिन सत्तर बोलों को माराधना सदाकाल की जाती नमस्कार मन्त्र] १९७
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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