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________________ प्रश्न करना, स्वयं शंका उठाना. जिससे शिष्यों के अन्त:करण में अध्ययन के प्रति अभिरुचि एवं जिज्ञासा पैदा हो। ६. प्रत्यवस्थान- इसको दूसरे शब्दों में प्रसिद्धि भी कहते है, इसका अर्थ है धारणा या समाधान । शिष्य के द्वारा उठाए गए प्रश्नों का उत्तर देना या स्वय प्रश्न करना और स्वय ही उसका उत्तर देना, क्योकि उपाध्याय शिष्यो की योग्यता जानने के लिए स्वयं प्रश्न करते हैं और शिष्यों से उत्तर मांगते हैं। उपाध्याय शिष्यों को अध्ययन कराते समय इस बात का विशेष ध्यान रखते है कि जो पाठ सामने आता है उसका विभागीकरण भी साथ-साथ किया जाए जैसे कि यह पाठ प्रौत्सर्गिक है और यह प्रापवादिक है । यह कथन द्रव्यार्थिक नय से है और यह पर्यायाथिक नय से । यह वचन व्यवहारनय की अपेक्षा से कहा गया है और यह निश्चय-नय की अपेक्षा से। यह पाठ जिनकल्प की दृष्टि से है और यह स्थविर-कल्प की दृष्टि से । यह पाठ देश-चारित्र की ओर सकेत करता है और यह सर्वचारित्र की ओर । यह पाठ श्रद्धागम्य है और यह तर्कगम्य है । यह पाठ द्रव्यानुयोग को सिद्ध करता है और यह चरण-करणानुयोग को। यह धर्मकथानुयोग के और यह गणितानुयोग के विषय का प्रतिपादन करता है। यह विषय ज्ञेय रूप और यह उपादेय रूप है तथा यह पाठ हेय को सिद्ध करता है । यह पाठ द्रव्यावश्यक का है और यह भावावश्यक को प्रमाणित करता है । यह पाठ नमस्कार मन्त्र] [८५
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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