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________________ कराना अधिक महत्वपूर्ण है। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है १.संहिता-उपाध्याय सर्व प्रथम शास्त्र के अन्तर्गत वर्णों या पाठ का शुद्ध उच्चारण करवाते हैं, क्योंकि शुद्ध उच्चारण से ही अर्थ का निर्णय होता है और निर्णीत अर्थ को जानकर ही सम्यग्ज्ञान होता है। २. पद-अध्ययन कराते हुए यह पद सुबन्त हैं, तिङन्त है, अव्यय है या क्रियाविशेषण है, इस प्रकार से पदों का ज्ञान कराना भी अनिवार्य है। जब तक पदों का ज्ञान नहीं होता, तब तक सूत्र के अर्थ का विशिष्ट ज्ञान नहीं हो सकता। ३. पदार्थ-पद-विज्ञान के बाद प्रत्येक पद या शब्द के अर्थ का बोध कराना आवश्यकीय है । जब तक शब्द का अर्थज्ञान शिष्य को नहीं हो जाता है, तब तक उसकी प्रवृत्ति अध्ययन में नही हो सकती। ४. पद-विग्रह-अध्ययन कराते हुए जहां कहीं समस्त पद हो, वहां उसका विग्रह करके, अर्थ की संगति करना, जैसे कि-'न विद्यतेऽगारं गृह यस्येति स: अनगार:' जिस का कोई घर नहीं है, उसे अनगार कहते हैं। इस प्रकार विग्रह करके अर्थ समझना भी शिष्य के लिये आवश्यक है। ५. चालना-शब्द को या अर्थ को लक्ष्य में रख कर [ पंचम प्रकाश
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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