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________________ हैं । अवगुणों के नष्ट होने पर ही आठ गुण जीवन में प्रकट होते हैं । जैसे कि १. हंसी-मजाक में अधिक रस न लेना । २. जितेन्द्रिय बनने का अभ्यास करना, सदैव इन्द्रियों का यथाशक्य दमन करना और विषयो में अनासक्त रहना, यह शिक्षाप्राप्ति का दूसरा गुण है। ३. किसी के मर्मकारी अप्रकाश्य रहस्य का अनावरण न करना, दूसरों की अपेक्षा अपने भीतर रहे हुए दोषों को दूर करने का प्रयत्न करना, यह शिक्षार्थी का तीसरा लक्षण है। ४. चाल-चलन का प्रशस्त होना, महापुरुषों की ओर से प्रशस्ति की प्राप्ति होना, यह शिक्षाग्राही का चौथा गुण ५. जिस संस्था में रहना, उसकी सभी मर्यादानों का पालन करना ही शिक्षाशील का पांचवा गुण है। ६. जिह्वा का चटोरा न बनना, खान-पान में प्रति लोलुपी न बनना, शिक्षाशील का यही छटा गुण है । ७. सहनशील होना, शान्तचित्त रहना, क्रोध की ज्वाला को भड़कने न देना, यह शिक्षार्थी का सातवां गुण है। ८. सत्यग्राही बनकर रहना, क्योकि सत्य-परायण व्यक्ति ही शिक्षा ग्रहण कर सकता है । यही शिक्षार्थी का आठवां गुण है। ८२] पंचम प्रकाश
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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