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________________ आलस्य-यह अवगुण भी व्यावहारिक और धार्मिक शिक्षाओं का सबसे बड़ा शत्रु है । प्रालस्य का अपना स्वभाव है कि वह मानव को स्वर्णिम अवसर मिलने पर भी सब तरह के लाभ से वंचित रखता है । वह वर्तमान को सफल नहीं करने देता । किसी कार्य को करने के लिए उद्यत न होने देना, लेटे रहना, अंगड़ाइयां लेना, शरीर में, मन में, अकर्मण्यता का होना, अपने हिताहित की ओर ध्यान न देना, ये सब आलसियों के लक्षण हैं। प्रालस्य मानव का बहुत बड़ा शत्रु है, जिस पर इसकी कुदृष्टि पड़ जाती है, उसे वह कभी भी सुरक्षित नहीं रहने देता। इन पांच अवगुणों में से किसी एक के होते हुए भी मानव अपना विकास नही कर सकता । भले ही उसे कितने ही श्रेष्ठ एवं समर्थ गुरु मिल जाएं तो भी वह किसी भी प्रकार से अपना उत्थान नहीं कर पाता, ऐसा भगवान फर्माया है। शिक्षार्थी के पाठ गुण मानव जिन पांच अवगुणों से शिक्षा के अयोग्य बनता है, उनका उल्लेख किया जा चुका है। जिन गुणों से वह शिक्षा के योग्य बन सकता है वे गुण आठ हैं । उनमें से यदि किसी में वे गुण स्वल्प मात्रा में भी हो, तब भी उसे योग्य ही कहा जाएगा। उपाध्याय भी योग्य को ही सुयोग्य बनाते नमस्कार मन्त्र] [८१
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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