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________________ वसुनन्दि-श्रावकाचार मोक्षतत्त्व-वर्णन हिस्सेसकम्ममोक्खो मोक्खो जिणसासणे समुहिट्ठो । तम्हि कए जीवोऽयं अणुहवइ अणंतयं सोक्खं ॥४५॥* समस्त कर्मों के क्षय हो जानेको जिनशासनमें मोक्ष कहा गया है। उस मोक्षके प्राप्त करनेपर यह जीव अनन्त सुखका अनुभव करता है ॥४५॥ णिसं सामित्तं साहणमहियरण-ठिदि विहाणाणि' । एएहि सम्वभावा जीवादीया मुणेयव्वा ॥४६॥ निर्देश, स्वामित्व, साधन, अधिकरण, स्थिति और विधान, इन छह अनुयोगद्वारोंसे जीव आदिक सर्व पदार्थ जानना चाहिये ॥४६॥ (इनका विशेष परिशिष्टमें देखिये) सत्त वि तच्चाणि मए भणियाणि जिणागमाणुसारेण । एयाणि सदहंतो सम्माइट्ठी मुणेयन्वो ॥४७॥ ये सातों तत्त्व मैने जिनागमके अनुसार कहे है। इन तत्त्वोंका श्रद्धान करनेवाला जीव सम्यग्दृष्टि जानना चाहिये ॥४७ ॥ सम्यक्त्वके आठ अङ्ग हिस्संका णिक्कंखा णिविदिगिच्छा अमूढदिठी य । उवगृहण ठिदियरणं वच्छल्ल पहावणा चेव ॥४॥ निःशंका, निःकांक्षा, निविचिकित्सा, अमूढदृष्टि, उपगूहन, स्थितिकरण, वात्सल्य और प्रभावना, ये सम्यक्त्वके आठ अंग होते हैं ॥४८॥ संवेश्रो णिव्वेश्रो जिंदा गरहा उवसमो भत्ती। 'वच्छल्लं अणुकंपा अटठ गुणा हुँति सम्मत्ते ॥४६॥ पाठान्तरम्-पूया अवण्णजणणं" अरुहाईणं पयत्तेण ॥ सम्यग्दर्शनके होनेपर संवेग, निर्वेग, निन्दा, गर्हा, उपशम, भक्ति, वात्सल्य और अनुकम्पा ये आठ गुण उत्पन्न होते हैं ॥४९॥ (पाठान्तरका अर्थ---अर्हन्तादिककी पूजा और गुणस्मरणपूर्वक निर्दोष स्तुति प्रयत्न पूर्वक करना चाहिये । ) इच्चाइगुणा बहवो सम्मत्तविसोहिकारया भणिया। जो उज्जमेदि एसु सम्माइट्ठी जिणक्खादो ॥५०॥ उपर्युक्त आदि अनेक गुण सम्यग्दर्शनकी विशुद्धि करनेवाले कहे गये हैं। जो जीव इन गुणोंकी प्राप्तिमें उद्यम करता है, उसे जिनेन्द्रदेवने सम्यग्दृष्टि कहा है ॥५०॥ १ निर्देशः स्वरूपाभिधानम् । स्वामित्वमाधिपत्यम् । साधनमुत्पत्तिकारणम् । अधिकरणमधिष्ठानम् । स्थितिः कालपरिच्छेदः । विधानं प्रकारः। २ इ. स. "णिस्संकिय णिक्कखिय' इति पाठः। ३ झ. गरहा। ४. प. प. प्रतिषु गायोत्तरार्षस्यायं पाठः 'प्या अवण्णजणणं अरहाईणं पयत्तेण' ५ प्रदोषोद्धावनम् । ६ झ. 'एदें। निर्जरा-संवराभ्यां यो विश्वकर्मक्षयो भवेत् । समोर इस विशेयो भन्यैनिसुखात्मकः ॥२०॥-गुण श्राव
SR No.010731
Book TitleVasunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1952
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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