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________________ वसुनन्दि-श्रावकाचार २४- सम्यक्त्वके होनेपर सवंग आदि आठ गुणोके तथा अन्य भी गुणोके होने का वर्णन ४६-५० २५-शुद्ध सम्यक्त्व ही कर्मनिग्रहका कारण है २६-निःशङ्गित आदि आठ अगोमें प्रसिद्ध होनेवाले महापुरुषोके नगर, नाम आदिका वर्णन ५२-५५ २७-कौन जीव सम्यग्दष्टि होता है ? २८-दार्शनिक श्रावकका स्वरूप २६-पच उदुम्बर फलोके त्यागका उपदेश ३०-सप्त व्यसन दुर्गति गमनके कारण है પૂe ३१-द्यूत व्यसनके दोषोका विस्तृत वर्णन ६०-६६ ३२-मद्यब्यसनके दोषोका , , ७०-७६ ३३ -मधु सेवनके , , , ८०-८४ ३४-मास सेवनके , ८५-८७ ३५–वेश्या सेवनके , पद-६३ ३६-आखेट खेलनेके , ६४-१०० ३७--चोरी करनेके , १०१-१११ ३८-परदारा सेवनके दोषोंका, , ११२-१२४ ३६-एक-एक व्यसनके सेवन करनेसे कष्ट उठानेवाले महानुभावोका वर्णन १२५-१३२ ४०-सप्त व्यसनसेवी रुद्रदत्तका उल्लेख . ४१-सप्त व्यसन सेवन करने से प्राप्त होनेवाले दुःखोंका वर्णन करनेकी प्रतिज्ञा ४२--व्यसनसेवी नरकोंमे उत्पन्न होता है १३५-१३७ ४३-नरकोकी उष्ण-वेदनाका वर्णन ४४-नरकोंकी शीत-वेदनाका वर्णन ४५-नरकोंमे नारकियोंके द्वारा प्राप्त होनेवाले दुःखोंका विस्तृत वर्णन १४०-१६६ ४६-तीसरी पृथिवी तक असुरकुमारो द्वारा पूर्व वैर स्मरण कराकर नारकियोका परस्पर लड़ाना १७० ४७-सातो पृथिवियोंके नरक-विलोंकी संख्या ... ४८-सातो पृथिवियोंके नारकियोंकी जघन्य और उत्कृष्ट आयुका वर्णन १७२-१७६ ४६-व्यसन सेवनके फलसे तिर्यग्गतिमें प्राप्त होनेवाले दुःखोंका विस्तृत वर्णन . १७७-१८२ ५०-व्यसन सेवनके फलसे नीच, विकलांग, दरिद्र और कुटुम्बहीन मनुष्य होकर अनेक प्रकारके दुःख भोगता है ... १८३-१६० ५१-व्यसन सेवनके फलसे भाग्यवश देवोमें उत्पन्न होनेपर भी देव-दुर्गतिके दुःखोंको भोगता है १६१-२०३ ५२व्यसन सेवनका फल चतुर्गति रूप ससारमे परिभ्रमण है ... ' ५३-पंच उदुम्बर और सप्त व्यसनके सेवनका त्याग करनेवाला सम्यक्त्वी जीव ही। दार्शनिक श्रावक है ... २०५ ५४-वती श्रावकके स्वरूप वर्णनकी प्रतिज्ञा ... २०६ ५५-द्वितीय प्रतिमास्थानमे १२ व्रतोंका निर्देश २०७ ५६-पॉच अणुक्तोका नाम निर्देश २०८ ५७-अहिंसाणुव्रतका स्वरूप . ५८-सत्याणुव्रतका स्वरूप ५६-अचौर्याणुव्रतका स्वरूप ६०-ब्रह्मचर्याणुव्रतका स्वरूप ६१-परिग्रह-परिमाणाणुव्रतका स्वरूप १३६ २०४ 9 ० २०६ ० . M or or mr ।
SR No.010731
Book TitleVasunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1952
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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