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________________ २१८ वसुनन्दि-श्रावकाचार शील २२३ सील सीस शीर्ष शुचि ३४८ सुकहा ब्रह्मचर्य मस्तक पवित्र शास्त्र उत्तम कथा उज्ज्व ल सर्वोत्तम ध्यान नील कमल आनन्द एक प्रत विशेष । श्रुति सुकथा शुक्ल शुक्लध्यान (देशीशब्द) सौख्य सौख्यसम्पत्ति सुकमाण सुकंदुत्थ सुक्ख सुक्खसम्पत्ति सुज्ज AA ८०. ००GG CG 1 .06 SA सूर्य रवि सुष्ठु सुणय सुण्ण . सुराणहर सुणिम्मल सुत्त 0 m सुनय शून्य शून्यगृह सुनिर्मल सूत्र .सूत्रधार सूत्रानुवीचि सुप्तोत्थित सूत्रार्थ सुदृष्टि शुद्ध सुपक्व सुप्रसिद्ध शुभ्र स्मारयित्वा स्वप्न श्रुत उत्तम सम्यक्नय खाली, रिक्त सूना घर अतिपवित्र परमागम, डोरा, धागा मुख्य पात्र शास्त्रानुमारी वचन सोकरके उठा हुआ सूत्रका अर्थ सम्यग्दृष्टि राग-द्वेषरहित उत्तम पका हुआ प्रख्यात उज्ज्व ल स्मरण कराकर स्वप्न शास्त्र-ज्ञान सुत्तहार सुत्ताणुवीचि सुत्तुठिय सुत्तत्थ सुदिट्ठी सुद्ध सुपक सुप्पसिद्ध सुब्भ *सुमराविऊण सुमिण 1 २४६ m ७ श्रुतदेवी सुय सुर्यदेवी सुयंध सुरतरु सुरवह सरस्वती खुशबू कल्पवृक्ष सुगंध सुरतरु सुरपति सुरभि ०८" सुरहि सुरा सुरिंद सुवइट्टय सुरा सुरेन्द्र सुप्रतिष्ठक सुवर्ण सुगध मदिरा देवोका स्वामी सांथिया सोना सुवर्णमय एक स्वर विशेष सुवरण 'सुसिर । सौवर्य सुषिर २५३
SR No.010731
Book TitleVasunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1952
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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