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________________ प्राकृत-शब्द-संग्रह २०७ छल 'ह्री' वीजाक्षर वृक्ष विशेष, पुष्प माला-दाता कल्पवृक्ष विशेष माया मायबीय मालई मालादुम मालंग माहप्प मिच्चु, मिच्चू मिच्छत्त मिच्छाइट्टी माया मायाबीज मालती माल्यद्रम माल्याग माहात्म्य मृत्यु मिथ्यात्व मिथ्याष्टि ४७१ ४३१ २५७ २५१ महिमा ११० मौत २६४ २०२ मिथ्यादर्शन मिथ्यात्वी जीव मीठा केवल मिट्ट मित्त मित्त मिष्ट ४४१ मात्र मित्र १६२ सुहृद् मित्तभाव मिय ३३६ मिस्स मिस्सपूजा ४२७ ४५६ १२७ 'मुक्क मुक्ख मुक्खकज्ज मुग्गर मुच्छ *मुणिऊण मुणेयव्व मित्रभाव मित मिश्र मिश्रपूजा मृत मुक्त मुख्य मुख्य कार्य मुद्गर मूर्छा मत्वा मन्तव्य ४०२ २१ १६७ २६६ २६१ २३ ३६६ मुत्तादाम मुत्ताहल मुत्ति मुह मैत्री परिमित मिला हुआ सचित्त-अचित्तपूजा मरा हुआ सिद्ध छटा हुआ प्रधान प्रधान कार्य एक अस्त्र मोह जानकर मानने योग्य रूपी मोतियोकी माला मोती सिद्धि मुह वाचाल, बकवादी मुखकी शुद्धि वाचाल स्त्री एक आयुध दो घडी या ४८ मिनिटका समय गूगा प्रमित बुद्धिमान् रचे गये संभोग मुक्ति, छुटकारा प्रसन्न, मोचित, छुडवाया हुआ मोतियों से बना मुक्तादाम मुक्ताफल मुक्ति मुख मुखर मुखशुद्धि मुखरा मुशल ३६० मुहसुद्धि मुहका मुसल मुहुत मूय ३४७ २७४ ४२८ २९१ ४६८ १६७ ३६२ २३५ २७१ २४४ ४३३ २६६ मेहावी मेहिय मेहुण सोक्ख मोइय मोत्तिय मूक मात्र मेधावी निर्वृत्त (देशी) मैथुन मोक्ष मोदित मौक्तिक २५७ ४२५
SR No.010731
Book TitleVasunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1952
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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