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________________ १९२ वसुनन्दि-श्रावकाचार MM h गिलय बिलाट पिल्लज्ज गिल्लोय गिल्लंछण ६४ १६६ १८० णिव नृप २६८ १६७ +णिवडंत णिवह ३६२ चतुर विरक्ति निलय घर, आश्रय ललाट भाल, कपाल निर्लज शर्म-रहित नृलोक मनुष्य-लोक निाच्छन शरीरके अवयवका छेदना, दागना नर-पालक, राजा निपतन्त गिरता हुआ निवह समूह, वैभव निर्वाण मुक्ति नैवेद्य देवार्थ-सकल्पित पक्वान्न निवृत्त लौटना, हटाना निविश्य स्थापन कर, रखकर, बैठकर निर्विघ्न विघ्न-रहित निर्षिचिकित्सा ग्लानि-रहित, सम्यक्त्वका गुण निर्विकृति निविकार भोजनवाला तप निपुण निवृत्ति निष्पत्ति निवृति मुक्ति निमज्जंत डूबता हुआ निवृत्त रचित, मुक्त निर्वेद निःशङ्क शंका-रहित निःशङ्का सम्यक्त्वका गुण निःश्वास दीर्घ सांस निशि रात्रि निशिभुक्ति रात्रि भोजन निशिभोजन रातका खाना निविश्य, निवेश्य स्थापन करके निःशंकित शंकामुक्त निःसृत्य निकल करके निशिथिका, नैधिकी स्वाध्योयभूमि, निर्वाणभूमि, नशिया निशुंभन . व्यापादन करना, कहना निःशेष समस्त निधि भंडार स्थापित क्षुद्र, ओछा नीला रंग नुत नम्रीभूत लेजाकर ज्ञेय जानने योग्य नेत्र नेत्रोद्धार आँख निकालना णिव्वाण गिविज्ज णिवित्त अणिविसिऊण णिधिग्ध णिविदिगिच्छ णिवियडी णिवुण णिवुत्ती गिवघुइ +णिव्वुडत णिवुद गिब्वे हिस्संक - णिस्संका णिस्सास णिसि णिसिमुत्ति णिसिमोयण *णिसिऊण हिस्संकिय गणिस्सरिऊण णिसिही णिसुंभण णिस्सेस णिहि णिहिय गीय णील णुय गणेऊण ५२ ४६७ ३१५ ४६६ ३२१ १७८ ४५२ ४५ ८७२ निहित ४३५ नीच नील १६३ ८३६ नीत्वा २८४ २७ होत ऑख ३९८ १०६
SR No.010731
Book TitleVasunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1952
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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