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________________ ४५७ वसुनन्दि-श्रावकाचार नही है नमस्कार करके नमस्कार मत्र नमस्कार हो, ऐसा वचन प्रणाम करके *णत्थि गमिऊण णमोकार *णमोत्थु *णमंसित्ता रायण रायणंदि गयर एयरी २२६ नास्ति नत्वा नमस्कार नमोऽस्तु नमस्कृत्य नयन नयनन्दि नगर नगरी ऑख ३०४ . ५४५ १८७ णर नर नरक १२० ४६७ नव ४६१ २२८ गरय गव रावगीव रावण णवमी गवविह गवर णवयार एवंसय ३६६ इस नामके एफ आचार्य शहर पुरी मनुष्य नारक बिल नौ सख्या कल्पातीत विमान नमस्कार नवी तिथि नौ प्रकार केवल, नई बात नमस्कार, नवकार पद इस नामका वेद, खसिया आकाश, नाखून नख, तीक्ष्ण अभिषेक नहानेका आसन स्नान करके नहाना स्नानघर जानकार अभिनय, खेल २२५ २६० २७७ नवग्रैवेयक नमन नवमी नवविध विशेप नवकार नपुंसक नम, नख नखर स्नपन स्नपनपीठ स्नात्वा स्नान स्नानगेह ज्ञात्वा नाटक ५२१ २२६.८४६,८७० राह ४१३ ४०७ ५०१ राहवण ण्हवणपीठ *ण्हाऊण ण्हाण ण्हाणगह *णाऊण णाडय २६३ ४१४ णाण ज्ञान बोध ४५२ ज्ञानोपकारण नाम ३२२ ५२९ ४३१ ४४० गाणुवयरण णाप गाय गारंग गाराय णारय गालिएर गाव पास णासावहार णाह 'णांहि । कणिउयत्तिऊण नाग नारंग नाराच नारक नालिकेर ज्ञानका साधक अर्थ एक कर्म, सज्ञा सर्प, एक वृक्ष विशेष फल विशेष, संतरा, नारंगी वाण नारकी जीव नारियल नाव, नौका स्थापन करना, धरोहर धरोहरको हड़प जाना स्वामी शरीरका मध्य भाग लौटकर ४४० ४१६ न्यास न्यासापहार नाथ नाभि निवृत्त्य ४६२ ३०५
SR No.010731
Book TitleVasunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1952
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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