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________________ व्रत-विधान मध्यम सुखसम्पत्ति-व्रत-इसमे व्रत प्रारम्भ करनके मासकी अमावस्या और पूर्णिमाके दिन उपवास करना पड़ता है । इस प्रकार एक वर्षमे २४ और पाँच वर्षमे १२० उपवास करना आवश्यक बताया गया है। लघु सुखसम्पत्ति-व्रत--यह व्रत सोलह दिनमे पूर्ण होता है। जिस किसी भी मासकी शुक्ला प्रतिपदासे अग्रिम मासकी कृष्णा प्रतिपदा तक लगातार १६ दिनके १६ उपवास करना इसमे आवश्यक बताया गया है। । उक्त तीनो ही प्रकारके व्रतोमे उपवासके दिन तीनो सध्याओमे एक-एक णमोकारमत्रकी मालाका जाप्य आवश्यक है। नन्दीश्वरपंक्ति-विधान--यह व्रत १०८ दिनमे पूरा होता है, इसमे ५६ उपवास और ५२ पारणा करना पडते है। उनका क्रम इस प्रकार है--पूर्व दिशा-सम्बन्धी अजन गिरिका वेला एक, उसके उपवास २, पारणा १। चार दधिमुखके उपवास ४, पारणा ४ । आठो रतिकरोके उपवास ८, पारणा ८ । इस प्रकार पूर्व-दिशागत जिनालय-सम्बन्धी उपवास १४ और पारणा १३ हुए। इसी प्रकार दक्षिण, पश्चिम और उत्तर दिशाके उपवासोके मिलानेपर कुल ५६ उपवास और ५२ पारणा होते है। इस व्रतमे 'ॐ ह्री नन्दीश्वरद्वीपे द्वापचाशज्जिनालयेभ्यो नम.' इस मंत्रका त्रिकाल जाप्य आवश्यक है। यदि यह व्रत आष्टान्हिका पर्वमे करे, तो उसकी उत्तम, मध्यम और जघन्य ऐसी तीन विधियॉ बतलाई गई है। उत्तमविधिमें सप्तमीके दिन एकाशन करके उपवासकी प्रतिज्ञा कर अष्टमीसे पूर्णमासी तक ८ उपवास करे। पश्चात् प्रतिपदाको पारणा करे। दशो दिन उपर्युक्त मत्रका त्रिकाल जाप्य करे। इस प्रकार कात्तिक, फाल्गुण और आषाढ तीनों मासमे उपवास करे। इसी प्रकार आठ वर्ष तक लगातार करे । मध्यमविधिमे सप्तमीके दिन एकाशन करके उपवासकी प्रतिज्ञाकर अष्टमीका उपवास करे और ॐ ह्री नन्दीश्वरसज्ञाय नम' इस मंत्रका त्रिकाल जाप्य करे । नवमीके दिन पारणा करे और 'ॐ ह्री अष्टमहाविभूतिसज्ञाय नम' इस मत्रका त्रिकाल जाप्य करे। दशमीके दिन केवल जल और चावल का आहार ले । 'ॐ ह्री त्रिलोकसारसज्ञाय नम' इस मंत्रका त्रिकाल जाप्य करे । एकादशीके दिन एक बार अल्प आहार करे। 'ॐ ह्री चतुर्मुखसंज्ञाय नम.' इ स मत्रका त्रिकाल जाप्य करे । द्वादशीके दिन एकाशन करे। 'ॐ ह्री पंचमहालक्षणसज्ञाय नम.' इस मत्रका त्रिकाल जाप्य करे। त्रयोदशीके दिन आचाम्ल करे अर्थात् जलके साथ नीरस एक अन्नका आहार करे।'ॐ ह्री स्वर्गसोपानसंज्ञाय नम.' इस मत्रका त्रिकाल जाप्य करे। चतुर्दशीके दिन चावल वा जल ग्रहण करे । 'ॐ ह्री सर्वसम्पत्तिसंज्ञाय नम' इस मत्रका त्रिकाल जाप्य करे । पूर्णमासीको उपवास करे। 'ॐ ह्री इन्द्रध्वजसज्ञाय नमः' इस मत्रका जाप्य करे । अन्तमे प्रतिपदाको पारणा करे । जधन्यविधिमे अष्टमीसे पूर्णिमासी तक प्रतिदिन एकाशन करे। 'ओ ह्री नन्दीश्वरद्वीपे द्वापंचाशज्जिनालयेभ्यो नम.' मत्रका त्रिकाल जाप्य करे। विमानपंक्ति-विधान-यह व्रत स्वर्गलोक-सम्बन्धी ६३ पटल-विमानोके चैत्यालयोकी पूजनभावनासे किया जाता है। प्रथम स्वर्गके प्रथम पटलका वेला १, पारणा १। इसके चारो दिशा-सम्बन्धी श्रेणीबद्ध विमानोके चैत्यालयोंके उपवास ४, पारणा ४ । इस प्रकार एक पटल-सम्बन्धी वेला १, उपवास ४ और पारणा ५ हुए। इस क्रमसे सोलह स्वर्गोके ६३ पटलके वेला ६३, उपवास २५२ और पारणा ३१५ होते है। इसमे व्रतारंभका तेला १ पारणा १ जोड़ देनेपर उपवासोंकी संख्या ३८१, पारणा ३१६ होते है । व्रतारम्भमे एक तेला करे फिर पारणा करके व्रत आरम्भ करे।'ॐ ह्री ऊर्ध्वलोक सम्बन्धि-असख्यात-जिनचैत्यालयेभ्यो नम.' इम मंत्रका त्रिकाल जाप्य करे। यह व्रत ६६७ दिनमे पूरा होता है। षोडशकारण-व्रत-यह व्रत एक वर्षमें भादों, माघ और चैत्र इन तीन महीनोंमें कृष्ण पक्षकी एकमसे अगले मासकी कृष्णा एकम तक किया जाता है। उत्तमविधिके अनुसार बत्तीस दिनके ३२ उपवास करना आवश्यक है। मध्यम विधिके अनुसार एक दिन उपवास एक दिन पारणा इस प्रकार १६ उपवास और १६ पारणा करना पड़ते है । जघन्य विधिमें ३२ एकाशन करना चाहिए । 'ॐ ह्री दर्शनविशुद्धचादि-षोड़श
SR No.010731
Book TitleVasunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1952
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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