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________________ प्राकृत साहित्य का इतिहास प्रव्रजित होने का उल्लेख है ।' यमुना, सरयू, आवी ( एरावती अथवा अचिरावती), कोसी और मही नामक नदियाँ गंगा में, तथा शतद्र, विपाशा, वितस्ता, एरावती (रावी) और चन्द्रभागा सिन्धु नदी में मिलती हैं । छठे अध्ययन में अंबष्ठ, कलंद, वेदेह, वेदिग, हरित, चुंचुण नामक छह आर्य जातियों, तथा उग्र, भोग, राजन्य, इक्ष्वाकु, णाय और कौरव नामक छह आर्यकुलों का उल्लेख है । सातवें अध्ययन में कासव, गोतम, वच्छ, कोच्छ, कोसिय, मंडव और वासिह इन सात मूल गोत्रों का कथन है। इन सातों के अवान्तर भेद बताये गये हैं। सात मूल नय, सात स्वर, सात दंडनीति और सात रत्नों आदि का उल्लेख है। महावीर वज्रर्षभनाराय संहनन और समचतुरस्र संस्थान से युक्त थे तथा सात रयणी (मुट्ठी बाँध कर एक हाथ का माप) ऊँचे थे। उनके तीर्थ में जमालि, तिष्यगुप्त, आषाढ़, अश्वमित्र, गंग, षडूलक, रोहगुप्त और गोष्ठामहिल नामक सात निह्नवों की उत्पत्ति • हुई। आठवें अध्ययन में पाठ अक्रियावादी, आठ महानिमित्त १. आवश्यकनियुक्ति (२४३-२४४) में कथन है वीरं अरिटनेमि पासं मल्लिं च वासुपुजं च । एए मोत्तूण जिणे अवसेला आसि रायाणो ॥ रायकुलेसु पि जाया विसुद्धवंसेसु खत्तियकुलेसु । न य इस्थियाभिसेया(?) कुमारवासंमि पव्वइया । मुनि पुण्यविजय जी अपने २०-९-१९४२ के पत्र में सूचित करते हैं कि यहां इच्छियाभिसेया पाठ है, अर्थात् इन तीर्थंकरों ने अभिषेक की इच्छा नहीं की। स्वयं आचार्य मलयगिरि ने इसका अर्थ 'ईप्सित अभिषेक किया है। २. गोत्रों के लिये देखिये अंगविज्जा ( अध्याय २५); मनुस्मृति, (पृष्ठ ३९९, श्लोक ८-१९, ३२-९, ४७-४); याज्ञवल्क्य स्मृति (प्रकरण १, पृष्ठ २८, श्लोक ९१-९५)।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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