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________________ स्थानांग कृषि, चार संघ, चार बुद्धि, चार नाट्य, गेय, माल्य और अलंकार आदि का कथन है। पाँचवें अध्ययन में पाँच महाव्रत और पाँच राजचिह्नों का उल्लेख है। जाति, कुल, कर्म, शिल्प और लिंग के भेद से पाँच प्रकार की आजीविका का प्ररूपण है। गंगा, यमुना, सरयू, एरावती ( राप्ती ) और मही' नामक महानदियों के पार करने का निषेध है, लेकिन राजभय, दुर्भिक्ष, नदी में फेंक दिये जाने पर अथवा अनार्यों का आक्रमण आदि होने पर इस नियम में अपवाद बताया है । इसी प्रकार वर्षाकाल में गमन का निषेध है, लेकिन अपवाद अवस्था में यह नियम लागू नहीं होता | अपवाद अवस्था में हस्तकर्म, मैथुन, रात्रिभोजन तथा सागारिक और राजपिंड ग्रहण करने का कथन है। साधारणतया निग्रंथ और निर्ग्रन्थिनियों को साथ में रहने का निषेध है, लेकिन निप्राथनियों के क्षिप्तचित्त अथवा यक्षाविष्ट अवस्था को प्राप्त हो जाने पर इस नियम का उल्लंघन किया जा सकता है। इसी प्रकार निर्ग्रथिनी यदि पशु, पक्षी आदि से संत्रस्त हो, गड्ढे आदि में गिर पड़े, कीचड़ में फँस जाये, नाव पर आरोहण करे या नाव पर से उतरे तो उस समय अचेल निग्रंथ सचेल निर्ग्रथिनी को अवलंबन दे सकता है। आचार्य या उपाध्याय द्वारा गण को छोड़कर जाने के सम्बन्ध में नियमों का उल्लेख है। निग्रंथ और निग्रंथिनियों के पाँच प्रकार के वस्त्र और रजोहरण का उल्लेख है। अतिथि, कृपण, ब्राह्मण, श्वान और श्रमण नाम के पाँच वनीपक गिनाये गये हैं। बाईस तीर्थंकरों में से वासुपूज्य, मल्ली, अरिष्टनेमी, पाव और महावीर के कुमार १. यह नदी सारन (बिहार) जिले में बहकर सोनपुर में गंडक में मिल जाती है। आठ महीने यह सूखी रहती है। विनयपिटक के चुल्लवग्ग (९. १. ४) तथा मिलिन्दपण्ह (हिन्दी अनुवाद, पृ० १४४, ४६८) में इन नदियों का उल्लेख है। २. मज्झिमनिकाय के लकुटिकोपमसुत्त में विकाल भोजन का निषेध है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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