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________________ अलंकार ग्रन्थों में प्राकृत पद्यों की सूची ७६१ । वहलतमा हयराई अज पउत्थो पई घरं सुन्नं । तह जग्गिज सयज्झय! न जहा अम्हे मुसिज्जामो॥ (काव्या० पृ० ५३, १५; गा० स०४, ३५) अभागी रात घोर अंधकारमय है, पति आज परदेश गया है, घर सूना पड़ा है। हे पड़ोसिन ! तू जागते रहना जिससे घर में चोरी न हो जाये ! (नायिका के पड़ोस में रहने वाले उपपति के प्रति यह उक्ति है।) बहुवल्लहस्स जा होइ वल्लहा कह वि पञ्चदिअहाई। सा किं छठें मग्गइ कत्तो मिहं च बहुअं च ॥ (स० के०५, ४४६, गा०स० १,७२) जो अनेक स्त्रियों का प्रिय है उसका प्रेम किसी वल्लभा पर अधिक से अधिक पाँच दिन तक हो सकता है । क्या वह वल्लभा उससे छठे दिन का (प्रेम) मांग सकती । है ? ठीक है, मीठी चीज बहुत नहीं मिलती। (समुच्चय अलङ्कार का उदाहरण) बालअ! णाहं दूती तुअ पिओसि त्तिण मह वावारो। . सा मरइ तुज्झ अअसो एअं धम्मक्खरं भणिमो॥ (साहित्य० पृ०७९०, अलंकारसर्वस्व ११५) हे नादान ! मैं दूती नहीं हूँ। तुम उसके प्रिय हो, इसलिये भी मेरा उद्यम नहीं है। मैं केवल यही धर्माक्षर कहने आई हूँ कि वह मर जायेगी और तुम अपयश के भागी होगे। बालत्तणदुल्ललिआए अज्ज अगजं किं अ णववहूए । भाआमि घरे एआइणि त्ति णितो पई रुद्धो॥ (स० के० ५, ३८४) बालत्व के कारण दुर्ललित नववधू ने. आज अनार्योंचित कार्य किया। उसने यह कह कर जाते हुए पति को रोक दिया कि मुझ अकेली को घर में डर लगता है । (परिणीत ऊढ़ा का उदाहरण) भई भोदु सरस्सईअ कइणो नन्दन्तु वासाइणो। अण्णाणांप परं पअदृदु वरा वाणी छइलप्पिया। वच्छोभी तह माअही फुरदु णो सा कि अ पंचालिआ। रीदियो विलहन्तु कव्वकुसला जोण्हं चओरा विव ।। . (स० कं० २, ३८५; कर्पूर० १-१) सरस्वती का कल्याण हो, व्यास आदि कवि आनंदित हों, कुशल जनों के लिये श्रेष्ठ वाणी दूसरों के लिये भी प्रवृत्त हो, वैदी और मागधी हम में स्फुरायमान हो, तथा जैसे चकोर ज्योत्स्ना को चाहता है वैसे ही काव्यकुशल लोग पांचालिका रीति का प्रयोग करें। भम धम्मिय ! वीसत्थो सो सुणओ. अज्ज मारिओ तेण।. गोलाणइकच्छकुडंगवासिना दरियसीहेण ॥ (काव्या० पृ० ४७, १३; साहित्य पृ० २४२, ध्वन्या० उ०१ पृ० १९; काव्यप्रकाश ५, १३८रस गं० १पृ०१५, गा० स०२, ७५० दशरूपक प्र०४ पृ०२२८)
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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