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________________ अलंकार ग्रन्थों में प्राकृत पद्यों की सूची ७४९ । चंचल हो रहा है ऐसी पुरुषायित ( रति के समय पुरुष की भाँति आचरण करने वाली ) प्रिया में कामदेव मानों समस्त शस्त्रों से सज्जित होकर उपस्थित हुआ है। दिअहे दिअहे सूसइ संकेअअभंगवडढिआसंका। . आपाण्डुरावणमुही कलमेण समं कलमगोवी ॥ (स० कं० ५, ३२६; गा० स० ७,९१) जैसे कलम ( एक प्रकार का धान ) पक जाने पर पीला पड़ कर दिन प्रतिदिन सूखने लगता है, वैसे ही (धान के खेत सूख जाने पर ) संकेत-स्थल के नष्ट हो जाने की चिन्ता से पीली पड़ी हुई, नीचे मुंह किये धान की रखवाली करने वाली (कृषक वधु ) दिन पर दिन सूखती जाती है । ( सहोक्ति अलङ्कार का उदाहरण ) दिअहं खु दुखिआए सअलं काऊण गेहवावारम् । गरुएव मण्णुदुक्खे भरिमो पाअन्तसुत्तस्स ॥ (दशरूपक प्र०२, पृ० १२३ गा० स०३,२६) दिन भर घर के कामकाज में लगी रहने के कारण दुःखी नायिका का भारी क्रोध एवं दु:ख प्रिय के पाँयतो की तरफ सो जाने से शांत हो गया । (औदार्य का उदाहरण) दिहाइ जंण दिट्ठो आलविआए वि जं ण आलत्तो। उवआरोण कओ ते चित्र कलि कनेहि (स. कं०५,२५२, ३, १२९) उस ( नायिका ) के द्वारा देखे जाते हुए भी जिसने उसकी ओर नहीं देखा, भाषण किये जाते हुए भी भाषण नहीं किया, और जिसने उसका स्वागत तक नहीं किया, उसे विदग्ध लोग ही समझ सकते हैं। (विचित्र, विषम अलङ्कार का उदाहरण) . दिट्ठा कुविआणुणआ पिआ सहस्सजणपेल्लणं पि विसहि। जस्स णिसण्णाइ उरे सिरीए पेम्मेण लहुइओ अप्पाणो ॥ (स० के०५,३२२) सहस्रजनों की प्रेरणा को सहन करके भी कुपित प्रियतमा को मनाया, ( तत्पश्चात् ) जिसके वक्षस्थल पर आसीन लक्ष्मी के प्रेम से उसकी आत्मा कोमल हो गई। दिहेज पुलइजसि थरहरसि पिअम्मि जं समासणे । तुह सम्भासणसेउल्लि फंसणे किं वि लजिहिसि ॥ (स० के० ५, १४८) जिस प्रियतम को देखने पर तू पुलकित होती है, जिसके पास आने पर कंपित होने लगती है और जिसके साथ वार्तालाप करने से पसीना-पसीना हो जाती है, उसके स्पर्श से तू भला क्यों लजाती है ? (संचारी भावों में स्वेद, रोमांच और वेपथु का उदाहरण)
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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