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________________ परिशिष्ट - १ कतिपय प्राकृत ग्रन्थों की शब्दसूची (क) आचारसूत्र ( प्राचीन आगम ) | असंथड = असमर्थ मइमं = मतिमान् असई = अनेक बार आहह (आहृत्य ) = रखकर गडभि ( स्वकृतभित् ) = अपने किये कर्म को भेदन करनेवाला विष्णू = विद्वान् अतिविज्जो = अति विद्वान् लंभो = लाभ सागारिक = मैथुन वुइया (उक्ता ) = कहा Tags (कीर्तयति) = कहता |हुरत्था = अन्यत्र कुजा ( कुर्यात् ) = करे हावए ( स्थापयेत् ) = स्थापना करे अदक्खु = देखते थे एलिक्खए = इस प्रकार की घास = ग्रास उक्खा = एक प्रकार का बर्तन खद्धं खद्धं = जल्दी जल्दी भिलुग = जहाँ की जमीन फट गई हो दुरुक्क = थोड़ा पीसा हुआ आएसग = अतिथि णिक्खु = बाहर निकलता है ऊसढ = उत्सृष्ट वच (वर्चस् ) = रूप वियड = प्रासुक जल जुगमायं = युगमात्र उत्तिंग = छिद्र जवस = धान्य पमेइलं (प्रमेदस्वी ) - बहुत चर्बीवाला अस्सं पडियाए (अस्वप्रत्यय) = अपने लिये नहीं विहं = मार्ग | णीहद्दु ( निस्सार्थ ) = निकाल कर सूत्रतांगसूत्र (प्राचीन आगम ) णूम = माया छन्न = माया कण्हुई = = कचित् आघं ( आ + ख्या) = आख्यातवान् विभज्जवाय = स्याद्वाद णीइए = नित्यः खेअन्न = 1 - निपुण हृण्णू = हन्यमान हेच ( हित्वा ) = छोड़कर अन्दु = जंजीर मच्चिया=मर्त्याः घडदासी = पानी भरने वाली खुसी (वृषी) = साधु गारत्थ = गृहस्थ भगवतीसूत्र ( प्राचीन आगम ) आइल = आदिम मत्थुलुंग = मस्तकभेद्यम् (भेजा ) पोहन्त: पृथक्त्व कोट्टकिरिया = एक देवी = चंडी बौदि = शरीर चुडिलव = जलते हुए घास के पूलों की भाँति वेसालियसावय = वैशाली के रहनेवाले महावीर के श्रावक
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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