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________________ प्राकृत शिलालेख किसी साहित्य का व्यवस्थित अध्ययन करने के लिये शिलालेख सर्वोत्तम साधन हैं। ताड़पत्र या कागज पर लिखे हुए साहित्य में संशोधन या परिवर्तन की गुञ्जायश रहती है जब कि पत्थर या धातु पर खुदे हुए लेख सैकड़ों हजारों वर्षों के पश्चात् भी उसी रूप में मौजूद रहते हैं। भारतवर्ष में सबसे प्राचीन शिलालेख प्रियदर्शी सम्राट अशोक के मिलते हैं। अपने राज्याभिपेक (ईसवी सन पूर्व २६६ ) के १२ वर्ष पश्चात् उसने गिरनार, कालसी (जिला देहरादून ), धौलि (जिला पुरी, उड़ीसा), जौगड़ (जिला गंजम, उड़ीसा), मनसेहरा (जिला हजारा, उत्तर-पश्चिमी सीमाप्रदेश), शाहबाजगढ़ी (जिला पेशावर, उत्तर-पश्चिमी सीमाप्रदेश), येरंगुड़ी (जिला करनूल, मद्रास) और सोपारा (जिला ठाणा) नामक स्थानों में शिलालेखों में धर्मलिपियों को उत्कीर्ण किया था। ये शिलालेख पालि भाषा में तथा ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों में विद्यमान हैं । हाथीगुंफा का शिलालेख प्राकृत के शिलालेखों में राजा खारवेल का हाथीगुंफा का शिलालेख अत्यन्त प्राचीन है। यह पालि से मिलता-जुलता है और ईसवी सन के पूर्व लगभग प्रथम शताब्दी के अंत में ब्राह्मी लिपि में भुवनेश्वर (जिला पुरी) के पास उदयगिरि नाम की पहाड़ी में उत्कीर्ण किया गया था। अशोक के शिलालेखों की अपेक्षा इस शिलालेख में भाषा का प्रवाह अधिक देखने में आता है जिससे इस काल की प्राकृत की समृद्धता का अनुमान किया जा सकता है। इस शिलालेख में खारवेल के राज्य के १३ वर्षों का वर्णन है किया है। इसकी रचना सिंधु नदी के तट पर स्थित माणिक्य महापुर के निवासी गोसइ विप्र ने की थी।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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