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________________ ६८० प्राकृत साहित्य का इतिहास चक्कविचार) की रचना की है। इसके अलावा पिपीलिका जान (पिपीलियानाण), अकालदंतकप्प आदि ज्योतिपशास्त्र के ग्रन्थों की रचनायें हुई। जगसुन्दरीयागमाल योनिप्रामृत का ही एक भाग था। फिर वसुदेवहिण्डीकार ने पोरागम नाम के पाकशास्त्रविपयक' ग्रंथ का और तरंगलोलाकार ने पुष्फजोणिसत्थ (पुष्पयोनिशास्त्र ) का उल्लेख किया है। अनुयोगद्वारचूर्णी में संगीनसम्बन्धी प्राकृत के कुछ पद्य उद्धृत किये हैं, इससे मालूम होता है कि संगीत के ऊपर भी प्राकृत का कोई ग्रन्थ रहा होगा। इसके अलावा प्राकृत जैन प्रन्थों में सामुद्रिकशास्त्र, मणिशास्त्र, गारुडशास्त्र और वैशिक (कामशास्त्र ) आदि संस्कृत के श्लोक उद्धृत हैं। इससे पता लगता है कि संस्कृत में भी शास्त्रीय विपयों पर अनेक ग्रन्थ लिखे गये थे। - - - - - - - - १. जैन ग्रन्थावलि, पृष्ट ३४७, ३५५, ३५७, ३६१, ३६४ । नेमिचन्द्रसूरि ने उत्तराध्ययन की संस्कृत टीका (८.१३) में स्वमसंबंधी प्राकृत गाथाओं के अवतरण दिये हैं। जगदेव के स्वप्नचितामणि से इन गाथाओं की तुलना की गई है। २. वि० सं० १४८३ में लिखी हुई सूरेश्वररचित पाकशास्त्र की हस्तलिखित प्रति पाटन के भंडार में मौजूद है। ३. उदान की परमस्थदीपनी नामक भट्ठकथा में अलंकारसस्थ का उल्लेख है जिसमें क्षौरकर्म की विधि बनाई है। ४. गुणचन्द्रसूरि, कहारयणकोस, पृष्ठ ३४ अ, ५० । ५. वही, पृ० ४४ । ६. जिनेश्वरसूरि, कथाकोपप्रकरण पृ० १२ । ७. 'दुर्विज्ञेयो हि भावः प्रमदानाम', सूत्रकृतांगचूर्णि, पृ० १४०, समवयांग की टीका (२९) में हरमेखला नामक वशीकरणसंबंधी शास्त्र का उल्लेख है। प्रोफेसर कापडिया ने (पाइय भापाओ भने साहित्य, पृष्ठ १८४) मयणमउड नाम के कामशास्त्रविषयक अन्य का उल्लेख
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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