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________________ शास्त्रीय प्राकृत साहित्य ६६९ कहा गया है।' आचार्य धरसेन भी अष्टांग महानिमित्त के पारगामी माने जाते थे। उपाध्याय मेघविजय ने अपने वर्पप्रबोध में भद्रबाहु के नाम से कतिपय प्राकृत गाथायें उद्धृत की हैं, इससे जान पड़ता है भद्रबाहु की निमित्तशास्त्र पर कोई रचना विद्यमान थी। . प्राचीन जैन ग्रन्थों में आठ महानिमित्त गिनाये हैं-भौम (भूकंप आदि), उत्पात (रक्त की वो आदि), स्वप्न, अन्तरिक्ष (आकाश में ग्रहों का गमन उदय, अस्त, आदि) अंग, (आँख, भुजा का स्फुरण आदि), स्वर (पक्षियों का स्वर), लक्षण (शरीर के लक्षण ) और व्यंजन (तिल, मसा आदि)। बृहत्कल्पभाष्य (१. १३१३), गुणचन्द्रगणि के कहारयणकोस (पृष्ठ २२ अ, २३, और अभयदेव ने स्थानांग (४२८ ) की टीका में चूडामणि नामक निमित्तशास्त्र का उल्लेख मिलता है । इसके द्वारा भूत, भविष्य और वर्तमान का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता था। १. गच्छाचारवृत्ति पृष्ठ ९३-९६ । २. प्रोफेसर हीरालाल रसिकदास कापडिया, पाइय भाषाओ अने साहित्य, पृष्ठ १६८। ३. ठाणांग ४०५-८.६०८ । कहीं इनके साथ छिन् (भूपकछिन्न), दण्ड, वस्तुविद्या, और छींक आदि भी सम्मिलित किये जाते हैं । देखिये सूत्रकृतांग १२.९; उत्तराध्ययन टीका ८.१३, १५.७ । समवायांग की टीका ( २९ ) के अनुसार इन आठों निमित्तों पर सूत्र, वृत्ति और वार्तिक मौजूद थे। अंग को छोड़कर बाको निमित्तों के सूत्र सहस्रप्रमाण, वृत्ति लक्षप्रमाण और इनकी वार्तिक कोटिप्रमाण थी। अंग के सूत्र लनप्रमाण, वृत्ति कोटिप्रमाण और वार्तिक अपरिमित बताई गई है। ४. तीतमणागनवट्टमाणस्थाणोपलब्धिकारणं णिमित्तं (निशीथचूर्णी, पृ० ८६२, साइक्लोस्टाइल प्रति)।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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