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________________ ग्यारहवाँ अध्याय शास्त्रीय प्राकृत साहित्य (ईसवी सन् की प्रथम शताब्दी से लेकर १४ वीं शताब्दी तक) ___ धार्मिक, पौराणिक और लोकसाहित्य के अलावा अर्थशास्त्र, राजनीति, ज्योतिष, हस्तरेखा, मंत्र-तंत्र और वैद्यक आदि शास्त्रीय (टेक्निकल) विषयों पर भी जैन-अजैन विद्वानों ने प्राकृत भाषा में साहित्य की रचना की है। साधुजीवन में इन सब विषयों के ज्ञान की आवश्यकता होती थी, तथा धर्म और लोकहित के लिये कितनी ही बार जैन साधुओं को ज्योतिप, वैद्यक, मंत्र-तंत्र, आदि का प्रयोग आवश्यक हो जाता था | जैन शास्त्रों में भद्रबाहु, कालक, खपुट, वन, पादलिप्त, विष्णुकुमार आदि कितने ही आचार्य और मुनियों का उल्लेख मिलता है जो धर्म और संघ पर संकट उपस्थित होने पर विद्या, मंत्र, आदि का आश्रय लेने के लिये बाध्य हुए। यहाँ इस विषय से सम्बन्ध रखनेवाले प्राकृत-साहित्य का परिचय दिया जाता है। अत्थसत्थ ( अर्थशास्त्र) प्राचीन जैन ग्रन्थों में अत्थसत्थ के नामोल्लेखपूर्वक प्राकृत की गाथायें उद्धृत मिलती हैं। चाणक्य के नाम से भी कुछ वाक्य उद्धृत हैं । इससे जान पड़ता है कि प्राकृत में अर्थशास्त्र के नाम का कोई ग्रन्थ अवश्य रहा होगा। हरिभद्रसूरि ने धूर्ताख्यान में खंडपाणा को अर्थशास्त्र का निर्माता बताया है। पादलिप्त की तरंगवती के आधार पर लिखी गई नेमिचन्द्रगणि की तरंगलोला में अत्थसत्थ की निम्नलिखित गाथायें उद्धृत हैं तो भणइ अत्थसत्थंमि वण्णिय सुयुणु ! सत्थयारेहिं । दूती परिभव दूनी न होइ कन्जस्स सिद्धकरी ॥
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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