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________________ प्राकृत साहित्य का इतिहास अलंकारशास्त्र की आवश्यकता होती है। काव्य के स्वरूप, रस. दोप, गुण, रीति और अलंकारों का निरूपण अलंकारशास्त्र में किया जाता है । वैदिक और लौकिक ग्रन्थों का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिये अलंकारशास्त्र का ज्ञान नितान्त आवश्यक बनाया है। राजशेखर ने तो इसे वेद का अंग ही मान लिया है। अलंकारशास्त्र के कितने ही प्राचीन और अर्वाचीन प्रणेता हुए हैं जिनमें भरत, भामह, दण्डी, वामन, रुद्रट, आनन्दवर्धन, कुन्तल, अभिनवगुप्त, वाग्भट, रुय्यक, भोजराज, मम्मट, हेमचन्द्र, विश्वनाथ, अप्पयदीक्षित और पण्डितराज जगन्नाथ के नाम मुख्य हैं। अलंकारशास्त्र के इन दिग्गज पंडितों ने प्राकृत भाषाओं संबंधी चर्चा करने के साथ-साथ ग्रन्थ में प्रतिपादित विपय के उदाहरणस्वरूप प्राकृत के अनेक सरस पद्य उद्धृत किये हैं जिससे पता लगता है कि इन विद्वानों के समक्ष प्राकृत साहित्य का अनुपम भण्डार था। इनमें से बहुत से पद्म गाथासप्तशती, सेतुबन्ध, गउडवहो, रत्नावलि, कर्पूरमञ्जरी आदि से उद्धृत हैं; अनेक अज्ञातकर्तृक हैं। विश्वनाथ ने अपने कुवलयाश्वचरित से कुछ पद्य उद्धृत किये हैं। दुर्भाग्य से इन ग्रन्थों के प्राकृत अंश का जैसा चाहिये वैसा आलोचनात्मक संपादन नहीं हुआ, इसलिये प्रकाशित संस्करणों पर ही अवलंबित रहना पड़ता है। काव्यादर्श काव्यादर्श के रचयिता दण्डी ( ईसवी सन् ७-८वीं शताब्दी का मध्य ) अलंकारसम्प्रदाय के एक बहुत बड़े विद्वान् थे। उन्होंने काव्य की शोभा बढ़ानेवाले अलंकारों का अपने ग्रंथ में वर्णन किया है। काव्यादर्श' (१.३२ ) में संस्कृत, प्राकृत, १. पिशल, प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ ७५-७६ । २. आचार्य रामचन्द्र मिश्र द्वारा संपादित, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी से संवत् २०१७ में प्रकाशित ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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