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________________ प्राकृत साहित्य का इतिहास परम्परा द्वारा इस व्याकरण के कर्ता वाल्मीकि कहे गये हैं। सिंहराज ने अपने ग्रन्थ में पूर्व (१२-४२), कौमार (कांतत्र) और पाणिनीय (२-२) का उल्लेख किया है । वस्तुतः त्रिविक्रम का आधार मानकर यह व्याकरण लिखा गया है। इस के छः भाग हैं जो २२ अध्यायों में विभाजित हैं। प्राकृत शब्द तीन प्रकार के बताये हैं-संस्कृतसम, संस्कृतभव और देशी। १८वें अध्याय में शौरसेनी, १९वें में मागधी, २०वें में पैशाची, २१ वें में चूलिकापैशाची और २२वें अध्याय में अपभ्रंश का विवेचन है। संज्ञा और क्रियापदों की रूपावलि के ज्ञान के लिये यह व्याकरण बहुत उपयोगी है। षड्भापाचन्द्रिका षड्भापार्चान्द्रका' में लक्ष्मीधर ने प्राकृतों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। उन्होंने प्राकृत', शौरसेनी, मागधी, पैशाची, चूलिकापैशाची" और अपभ्रंश इन छह भाषाओं का १. कमलाशंकर प्राणशंकर त्रिवेदी द्वारा सम्पादित वाम्बे संस्कृत और प्राकृत सीरज़ में सन् १९९६ में प्रकाशित । २. लचमीधर ने प्राकृत को महाराष्ट्रोद्भव कहा है। इसके समर्थन में उन्होंने आचार्य दण्डी का प्रमाण दिया है। स्वोपज्ञवृत्ति में लेखक ने सब स्त्रियों और नीच जाति के लोगों द्वारा प्राकृत बोले जाने का निर्देश किया है (श्लोक ३२-३३)। ३. शौरसेनी छद्मवेषधारी साधुओं, किन्हीं के अनुसार जैनों तथा अधम और मध्यम लोगों द्वारा बोली जाती थी (श्लोक ३४)। ४. मागधी धीवर आदि अतिनीच पुरुषों द्वारा बोली जाती थी (श्लोक ३५)। ५. पैशाची और चूलिकापैशाची राक्षम, पिशाच और नीच व्यक्तियों द्वारा बोली जाती थी (श्लोक ३५)। यहाँ पर पांड्य, केकय. बाहीक, सिंह, नेपाल, कुन्तल, सुधेष्ण, भोज, गांधार, हैव और कन्नौज देशों की गणना पिशाच देशों में की गई है। (श्लोक २९-३०) ६. अपभ्रंश आभीर आदि की बोली थी और कविप्रयोग के लिये
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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