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________________ ६४४ प्राकृत साहित्य का इतिहास लिखी है। नरचन्द्रसूरि ने भी हेमचन्द्र के प्राकृतव्याकरण की टीका बनाई है। इस व्याकरण में चार पाद है। पहले तीन पादों में और चौथे पाद के कुछ अंश मैं सामान्य प्राकृत, जिसे हेमचन्द्र ने आर्ष प्राकृत कहा है, के लक्षण बताये गये हैं। तत्पश्चात् चौथे पाद के अन्तिम भाग में शौरसनी (२६०-२८६ सूत्र), मागधी (२८७-३०२), पैशाची (३०३-२४), चूलिका. पैशाची ( ३२५-३२८) और फिर अपभ्रंश (३२६-४४६) का विवेचन किया गया है । 'कश्चित्', 'केचित्', 'अन्ये' आदि शब्दों के प्रयोगों से मालूम होता है कि हेमचन्द्र ने अपने से पहले के व्याकरणकारों से भी सामग्री ली है । यहाँ मागधी का विवेचन करते हुए प्रसंगवश एक नियम अर्धमागधी के लिये भी दे दिया है । इसके अनुसार अर्धमागधी में पुल्लिंग कर्ता के एक वचन में अ के स्थान में एकार हो जाता है (वस्तुतः यह नियम मागधी भाषा के लिये लागू होता है)। जैन आगमों के प्राचीन सूत्रों को अर्धमागधी में रचित कहा गया है (पोराणमद्धमागहभासानिययं हवइ सुत्तं)। अपभ्रंश का यहाँ विस्तृत विवेचन है। अपभ्रंश के अनेक अज्ञात ग्रंथों से शृङ्गार, नीति और वैराग्यसम्बन्धी सरस दोहे उद्धत किये गये हैं। प्राकृतशब्दानुशासन प्राकृतशब्दानुशासन के कर्ता त्रिविक्रम हैं। इन्होंने मङ्गलाचरण में वीर भगवान् को नमस्कार किया है तथा धवला के कर्ता वीरसेन और जिनसेन आदि आचार्यों का स्मरण किया है, इससे मालूम होता है कि वे दिगम्बर जैन थे। विद्यमुनि १. देखिये पिशल, प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ ७७ । २. इसका प्रथम अध्याय ग्रंथ प्रदर्शिनी, विज़गापट्टम से सन् १८९६ में प्रकाशित; टी० लडडू द्वारा सन् १९१२ में प्रकाशित, डाक्टर पी. एल. वैद्य द्वारा संपादित, जीवराज जैन ग्रंथमाला, शोलापुर की ओर से सन् १९५४ में प्रकाशित ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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