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________________ मृच्छकटिक मृच्छकटिक की गिनती भी प्राचीन नाटकों में की जाती है।' भास के चारुदत्त नाटक से यह प्रभावित है। मृच्छकटिक एक सामाजिक नाटक है जिसमें समाज का यथार्थवादी चित्र अङ्कित है । संस्कृत की अपेक्षा प्राकृत का उपयोग ही इसमें अधिक है । इसलिये प्राकृत भाषाओं के अध्ययन के लिये यह अत्यन्त उपयोगी है। सब मिलकर इसमें ३० पात्र हैं, इनमें स्वयं विवृतिकार पृथ्वीधर के कथनानुसार सूत्रधार, नटी, रदनिका, मदनिका, वसन्तसेना, उसकी माता, चेटी, कर्णपूरक, चारुदत्त की ब्राह्मणी, शोधनक और श्रेष्ठी ये ग्यारह पात्र शौरसेनी में, वीर और चन्दनक अवन्ती में, विदूषक प्राच्य में, संवाहक, स्थावरक, कुंभीलक, वर्धमानक, भिक्षु तथा रोहसेन मागधी में, शकार शकारी में, दोनों चण्डाल चाण्डाली में, माथुर और द्यूतकर ढक्की में तथा शकार, स्थावरक और कुंभीलक आदि मागधी में बातचीत करते हैं। इस नाटक में प्रयुक्त प्राकृत भाषायें भरत के नाट्यशास्त्र में उल्लिखित प्राकृत भाषाओं के नियमानुसार लिखी गई मालूम होती हैं । साधारणतया यहाँ भी शौरसेनी और मागधी भाषाओं का ही प्रयोग अधिकतर हुआ है। वसन्तसेना की शौरसेनी में एक उक्ति देखिये १. नारायण बालकृष्ण गोडबोले द्वारा संपादित और सन् १८९६ में गवर्नमेन्ट सेण्ट्रल बुक डिपो द्वारा प्रकाशित । २. मृच्छकटिक की विवृति में पृथ्वीधर ने प्राकृत भापाओं के लक्षणों का प्रतिपादन किया है शौरसेन्यवंतिजा प्राच्या एतास्तु दन्त्यसकारता। तत्रावंतिजा रेफवती लोकोक्तिबहुला । प्राच्या स्वार्थिकककारप्राया। मागधी तालव्यशकारवती। शकारी-चाण्डाल्योस्तालव्यशकारता रेफस्य च लकारता। वकारमाया ढक्कविभाषा । संस्कृतप्रायत्वे दन्त्यतालव्यसशकारद्वययुक्ता च।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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