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________________ कुमारवालचरिय ६०३ चूलिकापैशाची का उदाहरण मच्छर-डमरूक-भेरी-ढक्का-जीमूत-घोसा वि। बह्मनियोजितमप्पं जस्स न दोलिन्ति सो धो॥ -झच्छर ( अडाउज), डमरू, भेरी और पटह इनका मेघ के समान गम्भीर घोष भी जिसकी ब्रह्म-नियोजित आत्मा को दोलायमान नहीं करता, वह धन्य है। अपभ्रंश का उदाहरण उब्भियबाह असारउ सव्वु वि । म भमि कु-तिथिअ-पढ़ें मुहिआ परिहरि तृणु जिम्व सव्वु वि भव-सुह पुत्ता तुह मइ एउ कहिआ॥ -हे पुत्र ! मैंने अपनी भुजायें ऊपर उठाकर तुझ से कहा है कि सब कुछ असार है, तू व्यर्थ ही कुतीर्थों के पीछे मत फिर, समस्त संसार के सुख को तृण के समान त्याग दे। सत्य की महिमा प्रतिपादनतं बोल्लिअइ जु सच्चु पर इमु धम्मक्खरु जाणि । एहो परमत्था एहु सिवु एह सुह-रयणहँ खाणि ।। -जो सत्य है, वह परम है, उसे धर्म का रहस्य जान, यही परमार्थ है, यही शिव है और यही रत्नों की खान है। अशुभ भावों के त्याग का उपदेश काय-कुडल्ली निरु अथिर जीवियडउ चलु एहु । ए जाणिवि भव-दोसडा असुहउ भावु चएहु ।। -कायरूपी कुटीर नितांत अस्थिर है, जीवन चञ्चल है, इस प्रकार संसार के दोष जानकर अशुभ भावों का त्याग कर। सिरिचिंधकव्व (श्रीचिह्नकाव्य ) जैसे भट्टिकवि ने अष्टाध्यायी के सूत्रों का ज्ञान कराने के लिये भट्टिकाव्य (रावणवध), और आचार्य हेमचन्द्र ने सिद्धहेम के सूत्रों का ज्ञान कराने के लिये प्राकृतद्व-याश्रय काव्य की रचना की है, उसी प्रकार वररुचि के प्राकृतप्रकाश और त्रिविक्रम के
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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