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________________ ५९८ प्राकृत साहित्य का इतिहास हो गया। राजा सातवाहन और लीलावती का विवाह भी बड़ी सजधज के साथ सम्पन्न हुआ। कुमारियों के संबंध में कहा हैसव्वाउ च्चिय कुमरीओ कुलहरे जा ण हुँति तरुणीओ। ताव च्चिय सलहिज्जति ण उण णव-जोव्वणारंभे ॥ -कुलधर की समस्त कुमारियाँ तभी तक अच्छी लगती है जब तक कि वे तरुण होकर यौवन अवस्था को प्राप्त नहीं करती। फिर कहा गया है ण उणो धूयाए समं चित्त-क्खणयं जणस्स जिय-लोए । हियइच्छिओ वरो तिहुयणे वि दुलहो कुमारीणं ।।। -इस संसार में लोगों को अपनी कन्या जैसी और कोई चीज मन को कष्टदायी नहीं होती। कन्या के लिये मनचाहा वर तीन लोकों में भी मिलना दुर्लभ है। दैव के संबंध में उक्ति देखियेतह वि हु मा तम्म तुमं मा झुरसु मा विमुंच अत्ताणं । को देइ हरइ को वा सुहासुहं जस्स जं विहियं ।। -फिर भी किसी हालत में संतप्त नहीं होना चाहिये, खेद नहीं करना चाहिये, अपने आपका परित्याग नहीं कर देना चाहिये। क्योंकि जो सुख-दुख जिसके लिये विहित है उसे न कोई दे सकता है और न छीन ही सकता है। . कुमारवालचरिय ( कुमारपालचरित) कुमारपालचरित को व्याश्रयकाव्य भी कहा जाता है। इसके कर्ता कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्र हैं जिन्होंने व्याकरण, कोप, अलंकार और छन्द आदि विषयों पर अपनी लेखनी चलाई है। जिसप्रकार अष्टाध्यायी का ज्ञान कराने के लिए भट्टि कवि ने भट्टिकाव्य की रचना की है, उसी प्रकार हेमचन्द्र आचार्य ने. (जन्म सन् १. डाक्टर पी० एल० द्वारा सम्पादित, भांडारकार ओरियण्टल इन्स्टिट्यूट, पूना से १९३६ के प्रकाशित ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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