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________________ लीलावई भगाकर पाताललोक में ले गया है। महानुमति और उसकी सखी कुवलयावली मनोरथ-सिद्धि के लिये गोदावरी के तट पर पहुँच कर भवानी की उपासना करने लगीं। लीलावती सिंहलराज शिलामेघ और वसंतश्री की बहन शारदशी की पुत्री थी। एक बार वह प्रतिष्ठान के राजा सातवाहन (हाल) का चित्र देखकर मोहित हो गई; वह उसे केवल स्वप्न में देखा करती। अपने माता-पिता की आज्ञा लेकर लीलावती अपने प्रिय की खोज में चली। अपने दल के साथ वह गोदावरी तट पर पहुंची और यहाँ अपनी मौसी की कन्या महानुमती से मिल गई। तीनों विरहिणियाँ एक साथ रहने लगीं। इधर अपने राज्य का विस्तार करने की इच्छा से राजा सातवाहन ने सिंहलराज पर आक्रमण कर दिया । राजा के सेनापति विजयानंद ने सलाह दी कि सिंहलराज से मैत्री रखना ही उचित होगा । सातवाहन ने विजयानंद को अपना दूत बनाकर भेजा। वह रामेश्वर होता हुआ सिंहल के लिये रवाना हुआ। लेकिन मार्ग में तूफान आने के कारण नाव टूट जाने से गोदावरी के तट पर ही रुक जाना पड़ा। यहाँ पर उसे एक नग्न पाशुपत के दर्शन हुए | पता लगा कि सिंहलराज की पुत्री लीलावती अपनी सखियों के साथ यहीं पर निवास करती है। विजयानंद ने सातवाहन के पास पहुँचकर उसे सारा वृत्तान्त सुनाया । सातवाहन ने लीलावती के साथ विवाह करने की इच्छा व्यक्त की। लेकिन लीलावती ने यह कह कर इन्कार कर दिया कि जब तक महानुमती का उसके पति के साथ पुनर्मिलन न होगा तब तक वह विवाह न करेगी। यह सुनकर राजा सातवाहन अपने गुरु नागार्जुन के साथ पाताललोक में पहुँचा और उसने माधवानिल का उद्धार किया। अपनी राजधानी में लौटकर उसने भीषणानन राक्षस पर आक्रमण किया जिससे चोट खाते ही वह एक सुंदर राजकुमार बन गया । अब राजा सातवाहन, गंधर्वकुमार चित्रांगद और माधवानिल तीनों एक स्थान पर मिले | चित्रांगद् और कुवलयावली तथा माधवानिल और महानुमती का विवाह
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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