SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 604
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विसमबाणलीला ५९५ और ४६१ ) और विवेक (पृष्ठ ४५८, ४५६) नाम की टीकाओं में रावणविजय, सेतुबंध तथा शिशुपालवध और किरातार्जुनीय आदि के साथ इसका उल्लेख किया है। आनन्दवर्धन के ध्वन्यालोक ( उद्योत ३, पृ० १२७) और भोज के सरस्वतीकंठाभरण में भी हरिविजय का उल्लेख मिलता है। रावणविजय हेमचन्द्र ने अपने काव्यानुशासन में इसका उल्लेख किया है । अलंकारचूडामणि (पृ० ४५६ ) में इसका एक पद्य उद्धृत है। विसमबाणलीला विषमबाणलीला के कर्ता आनन्दवर्धन हैं। उन्होंने अपने ध्वन्यालोक ( उद्योत २, पृ० १११, उद्योत ४, पृ० २४१) में इस कृति का उल्लेख करते हुए विषमवाणलीला की एक प्राकृत गाथा उद्धृत की है | आचार्य हेमचन्द्र ने काव्यानुशासन की अलंकारचूडामणि (१-२४, पृ० ८१) में मधुमथविजय के साथ विषमबाणलीला का उल्लेख किया है । इस कृति की एक प्राकृत गाथा भी यहाँ (पृ०७४) उद्धृत है तं ताण सिरिसहोअररयणा हरणम्मि हिअयमिकरसं । बिंबाहरे पिआणं निवेसियं कुसुमबाणेण ॥ 9 लीलावई (लीलावती) भूषणभट्ट के सुपुत्र कोऊहल नामक ब्राह्मण ने अपनी पत्नी के आग्रह पर 'मरहट्ठन्देसिभासा' में लीलावई नामक काव्य की रचना की है। इस कथा में देवलोक और मानवलोक के पात्र होने के कारण इसे दिव्य-मानुषी कथा कहा गया है। जैन प्राकृत कथा-ग्रन्थों की भाँति यह कथा-ग्रन्थ धार्मिक अथवा उपदेशात्मक नहीं है। इसमें प्रतिष्ठान के राजा सातवाहन और १. डाक्टर ए० एन० उपाध्ये द्वारा सम्पादित सिंघी जैन ग्रन्थमाला, बम्बई में १९४९ में प्रकाशित ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy