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________________ स्तुति-स्तोत्र साहित्य ५७१ बाहुस्वामी का उवसग्गहर,' मानतुंग का भयहर, कमलप्रभाचार्य का पार्श्वप्रभुजिनस्तवन, पूर्णकलशगणि का स्तंभनपार्श्वजिनस्तवन, अभयदेवसूरि का जयतिहुयण, धर्मघोषसूरि का इसिमंडलथोत्त, ननसूरि का सत्तरिसयथोत्त, महावीरथव आदि मुख्य हैं । इसके सिवाय, जिनचन्द्रसूरि के नमुक्कारफलपगरण, मानतुंगसूरि के पंचनमस्कारस्तवन, पंचनमस्कारफल, तथा जिनकीर्तिसूरि के परमेष्ठिनमस्कारस्तव (मंत्रराजगुणकल्पमहो १. सप्तस्मरण के साथ जिनप्रभसूरि, सिद्धचन्द्रगणि और हर्षकीर्तिसूरि की व्याख्याओं सहित देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार ग्रन्थमाला की ओर से सन् १९३३ में बंबई से प्रकाशित । २. प्राचीन साहित्य उद्धार ग्रन्थावलि की ओर से सन् १९३६ में प्रकाशित जैनस्तोत्रसंदोह में संग्रहीत । तुहु गुरु, खेमंकरु ।। ३. सन् १९१६ में बंबई से प्रकाशित । उपाध्याय समयसुन्दर ने इस पर विवरण लिखा है। नमूना देखिये तुहु सामिउ, तुहु मायबप्पु तुहु मित्त, पियंकरु । तुहु गइ, तुहु मह, तुहु जि ताणु । तुहु गुरु, खेमंकरु । हुउं दुहभरभारिउ वराउ, राउल निब्भग्गह लीणउ । तुहु कमकमलसरणु जिण, पालहि चंगह ॥ -तुम स्वामी हो, तुम माँ-बाप हो, मित्र हो, प्रिय हो। तुम गति हो, त्राता हो, गुरु हो, क्षेमकर हो । मैं रंक दुख के भार से दवा हुआ हूँ, अभागों का राजा हूँ। हे जिन ! तुम्हारे चरणकमल ही मेरी शरण हैं, तुम मेरा भली प्रकार पालन करो। ४. यशोविजय महाराज द्वारा संपादित वि० सं० २०१२ में बड़ौदा से प्रकाशित । इस पर शुभवर्धन, हर्षनन्दन, भुवनतुंग, पद्ममंदिर आदि अचार्यों ने वृत्तियाँ लिखी हैं। ५. आत्मानन्द सभा, भावनगर से वि० सं० १९७० में प्रकाशित । समयसुन्दरगणि की इस पर स्वोपज्ञ अवचूरि है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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