SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 571
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५६२ प्राकृत साहित्य का इतिहास प्रथम उद्देश में श्रेष्ठीपुत्र धनपाल की कथा के प्रसंग में धर्मकथा का वर्णन है। यहाँ पर रात्रि, स्त्री, भक्त और जनपद कथा का त्याग करके धर्मकथा का श्रवण हितकारी बताया है। दूसरे उद्देश में सुदर्शना के जन्म का वर्णन है । सुदर्शना बड़ी होकर उपाध्यायशाला में जाकर लिपि, गणित आदि कलाओं का अध्ययन करती है। तीसरे उद्देश में सुदर्शना की कलाओं की परीक्षा ली जाती है | उसे जातिस्मरण हो आता है। भरुयकच्छ (भड़ौच) का ऋषभदत्त नाम का एक सेठ राजा के पास भेंट लेकर राजसभा में उपस्थित होता है। राजा के प्रश्न करने पर वह पारस से लाये हुए तेज दौड़नेवाले तुक्खार नाम के घोड़ों की प्रशंसा करते हुए घोड़ों के लक्षण कहता है जिनके मुख मांसरहित हों, जिनकी नसें दिखाई देती हों; विशाल वक्षस्थलवाले, परिमित उदरवाले, चौड़े मस्तकवाले, छोटे कानवाले, जिनके कानों का अंतर संकीर्ण है, पृष्ठभाग में पृथु, पश्चिम पार्श्व में मोटे, पसलियों से दुर्बल, स्निग्ध रोमवाले, मोटे कंधेवाले, घने बालोंवाले, सुप्रमाण पूँछवाले, गोल खुरवाले, पवन के समान दौड़नेवाले, लाल आँखोंवाले, दर्पयुक्त, सुप्रशस्त ग्रीवावाले, दक्षिण आवर्त्तवाले, शत्रु का पराभव करनेवाले, तथा स्वामी को जय प्राप्त करानेवाले घोड़े शुभ कहे जाते हैं । इसी प्रकार अशुभ घोड़ों के भी लक्षण बताये हैं। सुदर्शना के पिता अपनी कन्या की परीक्षा करने के लिये उससे निम्नलिखित पहेली का उत्तर माँगते हैं कः क्रमते गगनतलं ? किं क्षीणं वृद्धिमेति च नितांतम् ? को वा देहमतीव, स्त्रीपुंसां रागिणां दहति ? -१ गगनतल में कौन उड़ता है ? २ कौन वस्तु नितान्त क्षीण होती है और वृद्धि को प्राप्त होती है ? ३ रागयुक्त स्त्री-पुरुपों के शरीर को कौन अधिक दग्ध करता है ? ___ सुदर्शना का उत्तर-विरह (१ विःपक्षी, २ अह = दिन, ३ विरह)।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy