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________________ प्राकृत साहित्य का इतिहास को घोड़े पर बैठाकर पाटलिपुत्र ले आया। अमरदत्त उसे प्राप्त कर अत्यंत प्रसन्न हुआ। पासनाहचरिय ( पार्श्वनाथचरित) पार्श्वनाथचरित कहारयणकोस के कर्ता गुणचन्द्रगणि की दूसरी उत्कृष्ट रचना है। इस ग्रंथ की वि० सं० ११६८ (सन् ११११ में) भड़ौंच में रचना की गई। पार्श्वनाथचरित में 'पाँच प्रस्तावों में २३वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का चरित है। प्राकृत गद्य-पद्य में लिखी गई इस सरस रचना में समासान्त पदावलि और छन्द की विविधता देखने में आती है । काव्य पर संस्कृत शैली का प्रभाव स्पष्ट है। अनेक संस्कृत के सुभाषित यहाँ उद्धृत हैं। ___ पहले प्रस्ताव में पार्श्वनाथ के तीन पूर्वभवों का उल्लेख है। पहले भव में वे मरुभूति नाम से किसी पुरोहित के घर पैदा हुए | उनके भाई का नाम कमठ था। कमठ का मरुभूति की स्त्री से अनुचित संबंध हो गया जिसका मरुभूति को पता लग ' गया । राजा ने उसके कान काटकर और गधे पर चढ़ाकर नगर से निकाल दिया | कमठ ने तपोवन में पहुँचकर तापसों के व्रत स्वीकार कर लिये | मरुभूति जब कमठ से क्षमायाचना करने गया तो कमठ ने उसके ऊपर शिला फेंक कर उसे मार डाला। -दुसरे भव में दोनों भाई क्रमशः हाथी और सर्प की योनि में 'उत्पन्न हुए। दूसरे प्रस्ताव में मरुभूति किरणवेग नामका विद्याधर हुआ। . उसके जन्म आदि के वृत्तान्त के साथ बीच-बीच में मुनियों की देशना और उनके द्वारा कथित पूर्वभवों का वर्णन भी यहाँ दिया है। उसके बाद मरुभूति ने वज्रनाभ का जन्म धारण १. अहमदाबाद से सन् १९४५ में प्रकाशित । इसका गुजराती अनुवाद आत्मानन्द जैन सभा की ओर से वि० सं०२००५ में प्रकाशित हुआ है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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