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________________ ५३६ प्राकृत साहित्य का इतिहास -दूरतर देश में स्थित प्रिया के संगम की इच्छा करते हुए मनुष्य के जीवन की आशा का तंतु ही रक्षा कर सकता है। लाटदेश में स्थित भरुयच्छ (भृगुकच्छ) नगर में रेवाइच नामक ब्राह्मण आवया नाम की अपनी पत्नी के साथ रहता था। उसके पन्द्रह लड़कियाँ और एक लड़का था। ब्राह्मणी पानी भर कर, चक्की पीसकर, गोबर पाथकर और भीख माँगकर अपने कुटुम्ब का पालन करती। पेट के लिये आदमी क्या नहीं करता, इसके संबंध में कहा है बंसि चडंति धुणंति कर, धूलीधूया हंति । पोट्टहकारणि कापुरिस, कं कंजं न कुणंति -कापुरुष लोग बाँस पर चढ़ते हैं, हाथ को मटकाते हैं, धूलि में लिपटे रहते हैं, ऐसा कौन सा काम है जो पेट के कारण वे नहीं करते। ___ पाँचवें उद्देश में जंबूस्वामी के दूसरे भवों का वर्णन है । यहाँ प्रहेलिका, अंत्याक्षरी, द्विपदी, प्रश्नोत्तर, अक्षरमात्रबिन्दुच्युत और गूढचतुर्थपाद का उल्लेख है। छठे उदेश का नाम गृहिधर्मप्रसाधन है । एक उक्ति देखिये जंकल्ले कायव्वं अज्जं चिय तं करेह तुरमाणा। बहुविग्यो य मुहुत्तो मा अवरोहं पडिक्खेह ।' -जो कल करना है उसे आज ही जल्दी से कर डालो। प्रत्येक मुहुर्त बहुविघ्नकारी है, अतएव अपराह्न की अपेक्षा मत करो। ___ सातवें उद्देश में धर्मोपदेश श्रवण कर जंबूकुमार को वैराग्य हो जाता है। अपने माता-पिता के अनुरोध पर सिंधुमती, दत्तश्री, पद्मश्री, पद्मसेना, नागसेना, कनकधी, कमलावती और विजयश्री नाम की आठ कन्याओं से वे विवाह करते हैं | एक बार रात्रि १. मिलाइये काल कर सो आज कर आज करै सो अब । पल में परले होयगी बहुरि करोगे कब ॥
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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