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________________ जंबूचरिय किया जाता है कि यह ग्रन्थ विक्रम संवत् की ११वीं शताब्दी या उससे कुछ पूर्व लिखा गया है। जैन परंपरा में जंबूस्वामी अंतिम केवली माने जाते हैं, इनके पश्चात् किसी जैन श्रमण को निर्वाणपद की प्राप्ति नहीं हुई। महावीरनिर्वाण के पश्चात् जंबूस्वामी ने सुधर्मस्वामी के पास श्रमणधर्म की दीक्षा स्वीकार की। सुधर्म ने महावीर के उपदेशों को जंबू मुनि को सुनाया। इसलिये प्राचीन जैन आगमों में सुधर्म और जंबू मुनि के नाम-निर्देशपूर्वक ही महावीर के उपदेशों का उल्लेख किया गया है। जंबूचरिय में इन्हीं जंबूस्वामी के चरित का वर्णन किया है। ग्रंथ की शैली पर हरिभद्र की समराइञ्चकहा और उद्योतनसूरि की कुवलयमाला का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। धर्मकथाप्रधान यह ग्रन्थ गद्य-पद्य मिश्रित है, भाषा सरल और सुबोध है । कथा का वर्णन प्रवाहयुक्त है, बीच-बीच में जैनधर्म संबंधी अनेक उपदेशों को संग्रहीत किया गया है। इस ग्रन्थ में १६ उद्देश हैं। पहले उद्देश का नाम कहावीढ ( कथापीठ) है। यहाँ अर्थ, काम, धर्म और संकीर्ण कथा नाम की चार कथाओं का उल्लेख है। दूसरे उद्देश का नाम कहानिबंध (कथानिबंध ) है। तीसरे उद्देश में राजा श्रेणिक महावीर की वन्दना के लिये जाते हैं। चौथे उद्देश में वे अंतिम केवली जंबूस्वामी के संबंध में भगवान महावीर से प्रश्न करते हैं । महावीर उनके पूर्वभवों का वर्णन करते हैं। किसी पथिक के दोहे को देखिये सा मुद्धा तहिं देसडइ, दुक्खें दियह गमेइ । जइ न पहुप्पह सुयण तुहुँ, अवसिं पाण चएई ।। -वह मुग्धा उस देश में दुःख से दिन बिता रही है। हे सुजन ! यदि तुम नहीं आते हो वह अवश्य ही प्राणों को गँवा देगी। किसी पूर्व कवि की गाथा देखिये दूरयरदेसपरिसंठियस्स पियसंगमं महंतस्स | आसाबंधो चिय माणुसस्स परिरक्खए जीयं ॥
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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