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________________ पउमचरिय उसके पश्चात् तापसों की उत्पत्ति का वर्णन है। बारहवें उद्देशक में रावण की पुत्री मनोरमा के विवाह, शूलरन की उत्पत्ति, रावण का नलकूबर के साथ युद्ध और इन्द्र के साथ युद्ध का वृत्तान्त है। तेरहवें उद्देशक में इन्द्र के निर्वाणगमन का कथन है । चौदहवें उद्देशक में रावण मेरु पर्वत पर जाकर चैत्यगृहों की वन्दना करता है। अनन्तवीर्य धर्म का उपदेश देते हैं। यहाँ श्रमण और श्रावकधर्म का प्ररूपण है। रात्रिभोजनत्याग और उसका फल बताया गया है। तत्पश्चात् अंजनासुंदरी के विवाह-विधान में हनुमान का चरित, अंजना का पवनंजय के साथ संबंध आदि का वर्णन है। सोलहवें उद्देशक में पवनंजय और अंजनासुंदरी का भोग और सतरहवें उद्देशक में हनुमान के जन्म का वृत्तान्त है। बीसवें उद्देशक में तीर्थकर, चक्रवर्ती और बलदेव आदि के भवों का वर्णन है। मल्ली, अरिष्टनेमि, पार्श्वनाथ, महावीर और वासुपूज्य के संबंध में कहा है कि ये कुमारसिंह (बिना राज्य किये ही) गृह का त्याग करके चले गये, शेष तीर्थकर पृथ्वी का उपभोग कर दीक्षित हुए । इक्कीसवें उद्देशक में हरिवंश की उत्पत्ति और मुनिसुव्रत तीर्थकर का वृत्तांत है। बीस उद्देशकों की समाप्ति के पश्चात् सर्वप्रथम यहाँ राजा जनक और राजा दशरथ का नामोल्लेख किया गया है । बाईसवें उद्देशक में दशरथ के जन्म का वर्णन करते हुए विविध तपों का उल्लेख है। मांसभक्षण का फल प्रतिपादित किया है। अपराजिता, कैकेयी और सुमित्रा के साथ दशरथ का विवाह हुआ। किसी संग्राम में दशरथ की सारथि बनकर कैकेयी ने उसकी सहायता की जिससे प्रसन्न होकर दशरथ ने उससे कोई बर मांगने को कहा, चौबीसवें उद्देशक में इसका कथन है। १. एए कुमारसीहा गेहाओ निग्गया जिणवरिंदा। सेसावि हु रायाणो पहई मोत्तूण निक्खंता ॥ ५८ ॥ २. अन्यत्र अपराजिता के स्थान पर कौशल्या का नाम मिलता है। देखिये हरिभद्र का उपदेशपद, भाग १ ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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