SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 540
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राकृत साहित्य का इतिहास वैश्रमण का युद्ध, भुवनालंकार हाथी पर रावण का आधिपत्य आदि का वृत्तान्त है। नौवें उद्देशक में बाली और सुग्रीव का जीवन वृत्तान्त, खरदूषण का चन्द्रनखा के साथ विवाह, बाली और रावण का युद्ध, अष्टापद पर बाली मुनि द्वारा रावण का पराभव और धरणेन्द्र से शक्ति की प्राप्ति का वर्णन है। दसवें उद्देशक में रावण की दिग्विजय के प्रसंग में रावण का इन्द्र के प्रति प्रस्थान, तथा रावण और सहस्रकिरण के युद्ध का वृत्तान्त है। ग्यारहवें उद्देशक में रावण को जिनेन्द्र का भक्त बताया है, उसने अनेक जिन मंदिरों का निर्माण कराया था। यज्ञ की उत्पत्ति की कथा के प्रसंग में नारद और - पर्वत का संवाद है। नारद के जीवन-वृत्तान्त का कथन है। नारद ने आर्षवेदों से अनुमत वास्तविक यज्ञ का स्वरूप प्रतिपादन करते हुए कहा है वेइसरीरल्लीणो मणजलणो नाणघयसुपज्जलिओ । कम्मतरुसमुप्पन्नं, मलसमिहासंचयं डहइ ।। कोहो माणो माया लोभो रागो य दोसमोहो य । पसवा हवन्ति एए हन्तव्वा इन्दिएहि समं॥ सच्चं खमा अहिंसा दायव्वा दक्षिणा सुपजत्ता। दसणचरित्तसंजमबंभाईया इमे देवा ।। एसो जिणेहि भणिओ जन्नो सञ्चत्यवेयनिदिहो। जोगविसेसेण कओ देइ फलं परमनिव्वाणं ॥ -शरीर रूपी वेदिका में ज्ञानरूपी घी से प्रज्वलित, मनरूपी अग्नि, कर्मरूपी वृक्ष से उत्पन्न मलरूपी काष्ठ के समूह को भस्म करती है। क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष और मोह ये पशु है, इन्द्रियों के साथ इनका वध करना चाहिये। सत्य, क्षमा, अहिंसा, सुयोग्य दक्षिणा का दान, सम्यकदर्शन, चारित्र्य, संयम और ब्रह्मचर्य आदि देवता हैं। सच्चे वेदों में निर्दिष्ट यह यज्ञ जिनेन्द्र भगवान् ने कहा है। यदि यह योग-विशेष पूर्वक किया जाये तो परम निर्वाण के फल को प्रदान करता है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy