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________________ उपदेशमाला ४२१ गया है जो संयम और तप में प्रयत्न न करनेवाले व्यक्तियों को सुखकर नहीं होती। उपदेशमाला में कुल मिलाकर ५४४ गाथायें हैं। ग्रन्थकार ने अपनी इस कृति को शांति देनेवाली, कल्याणकारी, मंगलकारी आदि विशेषणों द्वारा उल्लिखित किया है। जैन परम्परा के अनुसार धर्मदासगणि महावीर के समकालीन बताये गये हैं, लेकिन वे ईसवी सन् की चौथीपाँचवीं शताब्दी के विद्वान जान पड़ते हैं। इस ग्रन्थ पर जयसिंह, सिद्धर्षि, रामविजय और रत्नप्रभसूरि ने टीकायें लिखी हैं। सिद्धर्षि की हेयोपादेय नामक टीका पर अज्ञातकर्तृक बृहद्वृत्ति की रचना हुई। उदयप्रभ ने भी उवएसमाला के ऊपर कर्णिकावृत्ति लिखी। ये दोनों वृत्तियाँ अप्रकाशित हैं। आगे चलकर इसके अनुकरण पर धर्मोपदेशमाला आदि की रचना हुई। इसमें चार विश्राम हैं। पहले विश्राम में रणसिंह, चंदनबाला, प्रसन्नचन्द्र, भरत और ब्रह्मदत्त आदि की कथायें हैं। दूसरे विश्राम में मृगावती, जम्बूस्वामी, भवदेव, कुबेरदत्त, मकरदाढ़ा वेश्या, भौताचार्य, चिलातिपुत्र, हरिकेश, वनस्वामी, वसुदेव आदि की कथायें हैं। जम्बूस्वामी की कथा में योगराज और एक पुरुष का संवाद है। तीसरे विश्राम में शालिभद्र, मेतार्यमुनि, प्रदेशी राजा, कालकाचार्य, वारत्रक मुनि, सागरचन्द, गोशाल, श्रेणिक, चाणक्य, आर्य महागिरि, सत्यकि, अनिकापुत्र, चार प्रत्येक बुद्ध आदि की कथायें हैं। चतुर्थ विश्राम में शेलकाचार्य, पुंडरीक-कंडरीक, दर्दुर, सुलस, जमालि आदि की कथायें हैं। शिष्य के संबंध में कहा है थद्धा छिद्दप्पेही, अवण्णवाई सयंमई चवला । वंका कोहणसीला, सीसा उव्वेअगा गुरुणो । रूसइ चोइज्जतो, वहई हियएण अणुसयं भणिओ । न य कम्हि करणिज्जे, गुरुस्स आलो न सो सीसो।। -अभिमानी, छिद्रान्वेषण करनेवाले अवर्णवादी, स्वयंमति, चपल, वक्र और क्रोधी स्वभाववाले शिष्य गुरु के लिये उद्वेग
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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