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________________ ४७३ प्राकृतकथासंग्रह खाने-पीने के ऊपर बाप बेटों में लड़ाई हुआ करती । अन्त में उसके पुत्र ने तंग आकर मुनिदीक्षा ले ली। जयलक्ष्मी देवी के कथानक में अघोर नामके योगीन्द्र का उल्लेख आता है जो मंत्र-तंत्र का वेत्ता था। रात्रि के समय पूजा की सामग्री लेकर निश्चल ध्यान में आसीन होकर वह नभोगामिनी विद्या सिद्ध करने लगा | सुंदरी देवी के कथानक में सुंदरी की कथा है । वह धणसार नामके श्रेष्ठी की कन्या थी, तथा शब्द, तर्क, छंद, अलंकार, उपनिबंध, काव्य, नाट्य, गीत और चित्रकर्म में कुशल थी । विक्रमराजा का चरित्र सुनने के पश्चात् वह उससे मन ही मन प्रेम करने लगी। इधर उसके माता-पिता ने सिंहलद्वीप के किसी श्रेष्ठी के पुत्र के साथ उसकी सगाई कर दी। उज्जैनी में सुंदरी का वचनसार नामका एक भाई रहता था । सुंदरी ने रत्नों का एक थाल भर कर और उसके ऊपर एक सुंदर तोता बैठाकर उसे विक्रमराजा को देने को कहा। राजा ने तोते का पेट फाड़कर देखा तो उसमें से एक सुंदर हार और कस्तूरी से लिखा हुआ एक प्रेमपत्र मिला। पत्र में लिखा था-"मैं तुम्हारे गुणों का सदा ध्यान करती रहती हूँ, ऐसा वह कौन सा क्षण होगा जब ये नयन तुम्हारा दर्शन करेंगे। वैशाख वदी द्वादशी को सिंहलद्वीप के निवणाग नामक श्रेष्ठीपुत्र के साथ मेरा विवाह होने वाला है। हे नाथ ! मेरे शरीर को तुम्हारे सिवाय और कोई स्पर्श नहीं कर सकता | अब जैसा ठीक समझो शीघ्र ही करो।" राजा ने पत्र पढ़कर शीघ्र ही अग्निवेताल भृत्य का स्मरण किया, और तुरत ही समुद्रमार्ग से उज्जैनी होता हुआ रत्नपुर को रवाना हो गया। नवकारमंत्र का प्रभाव बताने के लिये सौभाग्यसुन्दर की कथा वर्णित है। किसी आदमी को नदी में बहता हुआ घड़े के आकार का एक बिजौरा (बीजउर) दिखाई देता है। वह उसे ले जाकर राजा को दे देता है, राजा अपनी रानी को देता है। रानी उस स्वादिष्ट फल को खाकर वैसे ही दूसरे फल की मांग करती है, और उसके न मिलने पर भोजन का त्याग कर देती है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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