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________________ ४७२ प्राकृत साहित्य का इतिहास नंदन राजकुमार की कथा संस्कृत में है। दशार्णभद्र की कथा प्राचीन जैन ग्रन्थों में मिलती है। v पाइअकहासंगह ( प्राकृतकथासंग्रह) पउमचंदसूरि के किसी अज्ञातनामा शिष्य ने विक्कमसणचरिय नामक प्राकृत कथाग्रंथ की रचना की थी। इस कथाग्रंथ में आई हुई चौदह कथाओं में से बारह कथायें प्राकृतकथासंग्रह में दी गई हैं। इससे अधिक ग्रन्थकर्ता और उसके समय आदि के संबंध में और कुछ जानकारी नहीं मिलती। प्राकृतकथासंग्रह की एक प्रति संवत् १५९८ में लिखी गई थी, इससे पता लगता है कि मूल ग्रंथकार का समय इससे पहले ही होना चाहिये । इस संग्रह में दान, शील, तप, भावना, सम्यक्त्व, नवकार तथा अनित्यता आदि से संबंध रखनेवाली चुनी हुई सरस कथायें हैं। जिनमें अनेक लौकिक और धार्मिक आख्यान कहे गये हैं। दान में धनदेव और धनदत्त की कथा तथा सम्यक्त्व के प्रभाव में धनश्रेष्ठी की कथा दी गई है। कथक नाम के सेठ के धर्मवती नामकी भार्या थी। उसके पुत्र नहीं होता था, इसलिये उसने अपने पति से दूसरा विवाह करने का अनुरोध किया। कथक ने दूसरा विवाह कर लिया। कुछ समय बाद कालीदेवी की उपासना से कथक की दोनों पत्नियों के पुत्र उत्पन्न हुए | कृपण श्रेष्ठी की कथा में लक्ष्मीनिलय नामके एक कृपण सेठ का वर्णन है जो एक कौड़ी भी दान-धर्म में खर्च नहीं करता था। दान के डर से वह किसी साधु-संत के पास भी न जाता और लोगों से मिलना-जुलना भी उसने छोड़ दिया था। उसके घर में पहनने के नये वस्त्र तक नहीं थे । जब उसकी पत्नी के पुत्र हुआ तो वह उसे ठीक से खाना भी नहीं देता था। अपने पुत्र को पान खाते हुए देखकर वह लाल-पीला हो जाता। १. विजयानन्द सूरीश्वर जी जैन ग्रंथमाला में सन् १९५९ में भावनगर से प्रकाशित ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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