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________________ २६ प्राकृत साहित्य का इतिहास दिये गये कि इस प्राकृत का प्रयोग सबसे अधिक गीतों में किया जाता था; अधिकाधिक लालित्य लाने के लिये यह भाषा श्रुतिमधुर बनाई गई।' हाल की सत्तसई और जयवल्लभ का वजालग्ग महाराष्ट्री प्राकृत के सर्वश्रेष्ठ मुक्तक काव्य हैं जिनमें एक से एक बढ़कर कवियों की रचनाओं का...संग्रह है। सेतुबंध और गउडवहो जैसे महाकाव्य भी महाराष्ट्री प्राकृत में ही लिखे गये हैं । डाक्टर हरमन जकोबी ने इसे जैन महाराष्ट्री नाम से उल्लिखित किया है। जैन महाराष्ट्री के संबंध में 'आवश्यक कथायें' नामक ग्रंथ का पहला भाग एर्नेस्ट लौयमान ने सन् १८६७ में लाइप्त्सिख से प्रकाशित कराया था। तत्पश्चात् हरमन जैकोबी • ने 'औसगेवैल्ते एत्सैलुङ्गन इन महाराष्ट्रीत्सुर आइनफ्युरुङ्ग इन डास स्टूडिउम डेस प्राकृत प्रामाटिक टैक्स्ट वोएरतरबुख' (महाराष्ट्री से चुनी हुई कहानियाँ प्राकृत के अध्ययन में प्रवेश कराने के लिये ) सन् १८८६ में लाइपित्सख से प्रकाशित कराया । इसमें जैन महाराष्ट्री की उत्तरकालीन कथाओं का संग्रह किया गया। हेमचन्द्र के समय तक शौरसेनी के बहुत से नियम महाराष्ट्री प्राकृत के लिये लागू होने लगे थे। वररुचि और हेमचन्द्र ने महाराष्ट्री प्राकृत के निम्न लक्षण दिये हैं (क) क, ग, च, ज, त, द, प, य और व का प्रायः लोप हो जाता है (वररुचि २.२ ; हेमचन्द्र १.१७.७)। (ख) ख, घ, ध, थ, फ और भ के स्थान में ह हो जाता है (वररुचि २.२५ ; हेमचन्द्र १.१८७) । १. प्राकृतभाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ १८ । २. अन्य नियमों के लिये देखिये वररुचि का प्राकृतप्रकाश (१-९ परिच्छेद); हेमचन्द्र का प्राकृतव्याकरण (८.१-४, सूत्र १.२५९); लक्ष्मीधर की . षड्भाषाचन्द्रिका (पृ० १-२४६); मार्कण्डेय का प्राकृतसर्वस्व (१-८)।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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