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________________ ४५६ प्राकृत साहित्य का इतिहास धर्मप्रभसूरि आदि आचार्यों के नाम मुख्य हैं ।' कालिकाचार्य की कथा निशीथचूर्णि, बृहत्कल्पभाष्य और आवश्यकचूर्णि आदि प्राचीन ग्रन्थों में मिलती है। देवेन्द्रसूरि ने स्थानकप्रकरण-वृत्ति अथवा मूलशुद्धिटीका के अन्तर्गत कालिकाचार्य की कथा विक्रम संवत् ११४६ ( सन् १०८६) में लिखी है । यह कथा कालिकाचार्य पर लिखी गई अन्य कथाओं की अपेक्षा बड़ी और प्राचीन है तथा अन्य ग्रंथकारों ने इसे आदर्शरूप में स्वीकार किया है। देवचन्द्र कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य के गुरु थे। राजा सिद्धराज जयसिंह के राज्यकाल में उन्होंने प्राकृत गद्य-पद्य में शांतिनाथचरित की रचना की थी। देवचन्द्रसूरि की कालिकाचार्य कथा गद्य और पद्य दोनों में लिखी गई है, कहीं अपभ्रंश के पद्य भी हैं। धरावास नगर में वइरसिंह नामक राजा राज्य करता था, उसकी रानी सुरसुंदरी से कालक उत्पन्न हुए | बड़े होने पर एक बार वे अश्वक्रीडा के लिये गये हुए थे। उन्होंने गुणाकरसूरि मुनि का उपदेश सुना और माता-पिता की अनुज्ञा से श्रमणधर्म में दीक्षा ले ली। कालक्रम से गीतार्थ हो जाने पर उन्हें आचार्य पद पर स्थापित किया गया, और वे साधुसंघ के साथ विहार करते हुए उज्जैनी आये। उस समय वहाँ कुछ साध्वियाँ भी आई हुई थीं, उनमें कालक की छोटी भगिनी सरस्वती भी थी। उज्जैनी के राजा गर्दभिल्ल 1. यह जेड. डी. एम. जी. (जर्मन प्राच्य विद्यसमिति की पत्रिका) के ३४३ खण्ड में २४७वें पृष्ठ, १५वें खंड में ६७५ तथा ३७वें खंड में ४९३ पृष्ठ से छपा है । कालिकाचार्य-कथासंग्रह अंबालाल प्रेमचन्द शाह द्वारा संपादित सन् १९४९ में अहमदाबाद से प्रकाशित हुआ है। इसमें प्राकृत और संस्कृत की कालिकाचार्य के ऊपर भिन्नभिन्न लेखकों द्वारा लिखी हुई ३० कथाओं का संग्रह है। तथा देखिये उमाकान्त शाह, सुवर्णभूमि में कालकाचार्य; डबल्यू. नॉर्मन ब्राउन, स्टोरी ऑव कालक; मुनि कल्याणविजय, प्रभावकचरित की प्रस्तावना द्विवेदी अभिनन्दनग्रंथ, नागरीप्रचारिणी सभा काशी, वि० सं० १९९० ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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